सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या के लिए उकसाने से जुड़े मामलों में कानून के सही सिद्धांतों को समझने और लागू करने में अदालतों की अक्षमता अनावश्यक अभियोजन को जन्म देती है। सुप्रीम कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के कथित मामले में तीन आरोपियों के खिलाफ लखनऊ की एक अदालत में लंबित कार्यवाही को रद्द कर दिया।
‘आरोपी को अनावश्यक रूप से न किया जाए परेशान’
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, हालांकि वह पुलिस में एफआईआर दर्ज कराने वाले मृतक के परिवार के सदस्यों की भावनाओं और संवेदनाओं से अनभिज्ञ नहीं है, लेकिन अंततः पुलिस और अदालतों को ही इस मामले को देखना है। उन्हें यह सुनिश्चित करना है कि आरोपों का सामना कर रहे व्यक्तियों को अनावश्यक रूप से परेशान न किया जाए। पीठ ने 3 अक्तूबर के फैसले में कहा, भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत अपराध तय करने के लिए आवश्यक तत्व तभी पूरे होंगे, जब मृतक ने आरोपी के प्रत्यक्ष और भयावह प्रोत्साहन या उकसावे के कारण आत्महत्या की हो। उसके पास आत्महत्या के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
‘अदालतें सिर्फ आत्महत्या का तथ्य देखती है, यही समस्या’
पीठ ने कहा, समस्या यह है कि अदालतें सिर्फ आत्महत्या के तथ्य को ही देखती हैं और इससे अधिक कुछ नहीं। हमारा मानना है कि अदालतों की ऐसी समझ गलत है। यह सब अपराध और आरोप की प्रकृति पर निर्भर करता है। ऐसे मामलों में अदालत को जांचना चाहिए कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्रियों के आधार पर क्या प्रथम दृष्टया भी ऐसा संकेत मिलता है कि अभियुक्त ने इस कृत्य के परिणाम, यानी आत्महत्या का इरादा किया था या नहीं। पीठ ने कहा कि इन दिनों चलन यह है कि अदालतें पूर्ण सुनवाई के बाद ही अपराध के पीछे की मंशा को समझ पाती हैं।
जानें क्या है पूरा मामला?
शीर्ष अदालत ने तीन आरोपियों की याचिका पर आदेश पारित किया। याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के मार्च 2017 के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने कहा कि मृतक एक निजी फर्म का कर्मचारी था और पिछले 23 वर्षों से कंपनी के साथ काम कर रहा था। रिकॉर्ड में रखी सामग्री के मुताबिक उस व्यक्ति ने नवंबर 2006 में लखनऊ के एक होटल के कमरे में आत्महत्या कर ली थी। मृतक के भाई ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई थी। इसमें आरोप था कि अपीलकर्ता उसके भाई की कंपनी में वरिष्ठ अधिकारी थे और वे उस दिन उसके भाई के साथ मौजूद थे। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि कंपनी चाहती थी कि कुछ कर्मचारी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना (वीआरएस) का विकल्प चुनें और इस कदम का विरोध करने वालों को परेशान किया गया। मृतक को अपीलकर्ताओं की ओर से अपमानित करने का आरोप लगाया गया था।