पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर सुनवाई चार हफ्ते के लिए टाल दी गई है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने दलील दी कि बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका का मामला बेहद संवेदनशील है। ऐसे में केंद्र सरकार ने फैसला लेने के लिए और समय की मांग की। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई चार हफ्ते के लिए टाल दी।
केंद्र ने मांगा समय
सोमवार को बलवंत सिंह की दया याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने सुनवाई की। इस सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। मेहता ने कहा कि ‘यह मामला बेहद संवेदनशील है। इस मामले में कुछ एजेंसियों से चर्चा की जाएगी।’ इसके बाद पीठ ने मामले की सुनवाई चार हफ्ते बाद के लिए स्थगित कर दी। इससे पहले 18 नवंबर को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सचिव से राजोआना की दया याचिका पर विचार करने को कहा था। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर को राजोआना की दया याचिका पर केंद्र सरकार, पंजाब सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब मांगा था।
31 अगस्त 1995 को पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 16 अन्य की चंडीगढ़ स्थित सचिवालय के द्वार पर बम धमाके में हत्या कर दी गई थी। इस मामले में बलवंत सिंह राजोआना को जुलाई 2007 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। हालांकि राजोआना की फांसी की सजा में देरी हुई, जिसके बाद राजोआना ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उसकी मौत की सजा माफ करने की मांग की थी।
झांसी मेडिकल कॉलेज अग्निकांड की समयबद्ध जांच की मांग, वकील ने मुख्य न्यायाधीश को लिखी चिट्ठी
सुप्रीम कोर्ट के वकील अमित द्विवेदी ने देश के मुख्य न्यायाधीश को एक चिट्ठी लिखकर झांसी मेडिकल कॉलेज अग्निकांड की उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। झांसी मेडिकल कॉलेज के नवजात बच्चों के वार्ड एनआईसीयू में लगी आग में 17 मासूमों की मौत हो गई थी। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को लिखी चिट्ठी में वकील द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक समिति से तय समय में जांच कराने की मांग की। झांसी के महारानी लक्ष्मी बाई मेडिकल कॉलेज में बीती 15 नवंबर को आग लग गई थी, जिसमें 17 नवजातों की मौत हो गई थी। 10 नवजात घटना के समय ही काल के गाल में समा गए थे, जबकि सात अन्य की इलाज के दौरान मौत हो गई थी।
पीड़ित परिवारों को न्याय देने की मांग
चिट्ठी में अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाया गया है और अग्निकांड के समय आग बुझाने वाले यंत्रों के न चलने का भी जिक्र किया गया है। चिट्ठी में जवाबदेही तय करने और पीड़ित परिवारों को न्याय देने की मांग की गई है। वकील ने आरोप लगाया कि कई सरकारी डॉक्टर निजी क्लीनिक चलाते हैं और वे अपने क्लीनिक्स को प्राथमिकता देते हैं, जिससे सरकारी अस्पतालों में मरीज प्रभावित होते हैं। वकील ने चिट्ठी में डॉक्टर्स के निजी प्रैक्टिस करने पर सख्त गाइडलाइंस जारी करने का सुझाव दिया, जिससे लोगों का सरकारी अस्पतालों में विश्वास स्थापित हो सके। गौरतलब है कि अस्पताल में देर रात आग लगी और आग की वजह शॉर्ट सर्किट को माना जा रहा है।
सुरजागढ़ खदान आगजनी मामले में सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत याचिका पर सुनवाई टली
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को साल 2016 के सुरजागढ़ लौह अयस्क खदान आगजनी मामले में सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत याचिका पर सुनवाई 4 दिसंबर तक के लिए टाल दी। दरअसल महाराष्ट्र सरकार ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए और समय देने की मांग की। जिसके बाद न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने सुनवाई को स्थगित कर दिया। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 10 अक्तूबर को इस मामले में नोटिस जारी कर राज्य सरकार से जवाब मांगा था।
सुरेंद्र गाडलिंग की जमानत याचिका बॉम्बे हाईकोर्ट से खारिज हो चुकी है और अब सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई कर रहा है। दरअसल 25 दिसंबर, 2016 को माओवादी ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सूरजागढ़ खदानों से लौह अयस्क के परिवहन के में लगे 76 वाहनों को कथित तौर पर आग के हवाले कर दिया था। इस मामले में गाडलिंग आरोपी है और उस पर माओवादियों की मदद करने का आरोप है। गाडलिंग पर 31 दिसंबर 2017 को एल्गर परिषद के दौरान हुई हिंसा के मामले में भी आरोप हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची में गड़बड़ी दूर करने की मांग वाली याचिका की खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी को दूर करने के लिए चुनाव आयोग और राज्य चुनाव निकायों को निर्देश देने की मांग की गई थी। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय सभी अधिकारियों को एकसमान निर्देश जारी नहीं कर सकता। हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता राष्ट्रवादी आदर्श महासंघ को अपनी शिकायतों के साथ उच्च न्यायालयों में जाने की अनुमति दी। जनहित याचिका में मतदाता प्रविष्टियों के दोहराव के “खतरे” को उजागर किया गया और आरोप लगाया गया कि इससे भारत में चुनावों की पवित्रता को नुकसान पहुंचता है।
राजस्थान सरकार ने किया याचिका का विरोध
राजस्थान सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जयपुर में सांगानेर ओपन-एयर जेल परिसर को आवंटित क्षेत्र में 300 बिस्तरों वाले अस्पताल के निर्माण का आरोप लगाने वाली याचिका का विरोध किया। सरकार ने इसे प्रायोजित मुकदमा करार दिया। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार को कोर्ट कमिश्नर के रूप में कार्य करने और साइट का निरीक्षण करने के बाद रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में राजस्थान के शीर्ष अधिकारियों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करने का आरोप लगाया गया था। राजस्थान की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य ने सांगानेर ओपन एयर कैंप के क्षेत्र को न तो कम किया है और न ही कम करने का कोई प्रयास किया जा रहा है।
पुस्तकालय की इमारत को गिराने पर दिल्ली नगर निगम को फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सार्वजनिक पुस्तकालय की इमारत गिराने पर दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) को कड़ी फटकार लगाई। क्योंकि निगम ने प्रभावित पक्ष को राहत मांगने का मौका दिए बिना ही इमारत को गिरा दिया। कोर्ट ने कहा कि कोई दैवीय शक्ति नहीं है जो आपको जगा सके। नाराज जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने सवाल किया कि नगर निगम 1954 से डीपीएल वाली इमारत को कैसे गिरा सकता है। वह पक्षकारों के सुप्रीम कोर्ट जाने का इंतजार नहीं कर रहा। पीठ ने नगर निगम की ओर से अदालत में पेश हुए वकील को चेतावनी देते हुए कहा कि सालों से लोग आपको जगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। कोई दैवीय शक्ति नहीं है जो आपको जगा सके। लेकिन इस मामले में, एक हफ्ते के भीतर ही आपने बिजली की तेजी से काम किया और इमारत को गिरा दिया। हम न केवल जांच का आदेश देंगे, बल्कि अगर कोई गड़बड़ी पाई जाती है, तो इमारत की भरपाई करने का भी निर्देश देंगे।