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Tuesday, November 18, 2025

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व्हिसलब्लोअर’ को भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना पड़ा महंगा, ‘ग्राउंड कमांडर’ के NOIDA से मणिपुर आने की कहानी

देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ के सहायक कमांडेंट राहुल सोलंकी ‘व्हिसलब्लोअर’ को भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलना महंगा पड़ रहा है। सोलंकी ने भ्रष्टाचार के मामले न केवल डीजी के समक्ष उठाए हैं, बल्कि वे दिल्ली हाईकोर्ट के संज्ञान में भी आ चुके हैं। सहायक कमांडेंट राहुल को पहले नोएडा से सोनीपत ग्रुप सेंटर पर अटैच कर दिया गया। इसके बाद सहायक कमांडेंट का तबादला, मणिपुर की 87वीं बटालियन में किए जाने का आदेश जारी हुआ। राहुल सोलंकी ने इस बाबत दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। मंगलवार को न्यायमूर्ति सी हरिशंकर व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला ने मामले की सुनवाई की। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस सारे मामले को गौर से सुना। यह बात भी आई कि विभाग, ‘व्हिसलब्लोअर’ को पसंद नहीं करता। हाईकोर्ट ने फिलहाल तबादले पर रोक नहीं लगाई है। भ्रष्टाचार के केस की सुनवाई अभी लंबित है। जस्टिस नवीन चावला की बेंच ने भी इस केस प्रारंभिक सुनवाई में कहा था कि प्रथम दृष्टया यह मामला एक व्हिसलब्लोअर अफसर के उत्पीड़न का प्रतीत होता है

बता दें कि अप्रैल 2024 में राहुल सोलंकी ने सीआरपीएफ फैमिली वेलफेयर एसोसिएशन (सीडब्लूए) की अध्यक्ष (परंपरा के अनुसार डीजी सीआरपीएफ की पत्नी होती हैं) को एक शिकायत दी थी। इसमें जवानों को घटिया क्वालिटी के ट्रैकसूट जबरन ऊंचे दामों पर बेचने की बात कही गई। राहुल का कहना था कि यह न केवल भ्रष्टाचार था, बल्कि जवानों के कल्याण के साथ सीधा खिलवाड़ भी था। शिकायत करने के तुरंत बाद, जून 2024 में राहुल को ग्रुप सेंटर ग्रेटर नोएडा से बिना कारण बताए और बिना अवधि तय किए, ग्रुप सेंटर सोनीपत में अटैच कर दिया गया। उक्त अधिकारी ने 20 जून 2024 को डीजी को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने अपने अटैचमेंट का मकसद और उसकी अवधि जाननी चाही, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद 19 जुलाई 2024 को राहुल ने डीजी को दोबारा से पत्र लिखा। उसमें नोएडा में भ्रष्टाचार से जुड़े कुछ मुद्दों का जिक्र था। इस बाबत 20 अगस्त 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट में रिट पिटीशन संख्या 11453 फाइल की गई।

तब ट्रांसफर को रद्द करने के लिए जो याचिका लगाई गई थी, वह डिसमिस हो गई, क्योंकि राहुल ने सोनीपत में ज्वाइन कर लिया था। सहायक कमांडेंट ने 28 अगस्त को जीसी नोएडा के डीआईजी को एक पत्र लिखा। उसमें सोनीपत और नोएडा के बीच आवाजाही के लिए वाहन मुहैया कराने की बात कही गई थी। 12 सितंबर को इस संबंध में आईजी वीआईपी सिक्योरिटी से दखल की गुहार की गई। 13 सितंबर को जीसी नोएडा ने वाहन देने की मांग को खारिज कर दिया और कहा, सोनीपत जीसी में ही बात करें। इसके बाद 21 सितंबर को राहुल ने दोबारा से जीसी नोएडा के डीआईजी को पत्र लिखा। इसमें वित्त मंत्रालय और दिल्ली सरकार के नियम का हवाला दिया गया। एक अक्तूबर को जीसी सोनीपत के डीआईजी ने भी वह रिक्वेस्ट खारिज कर दी। 

जब कहीं से कोई राहत नहीं मिली तो सहायक कमांडेंट ने पांच अक्तूबर को डीजी को पत्र लिखा। शीर्ष अफसर से इस प्रकरण में हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई गई। इस बीच राहुल ने टीए बिल जमा किए, लेकिन दोनों ही रिजेक्ट कर दिए गए। हालांकि 25 अक्तूबर को डीए का बिल जमा किया गया, जिसका भुगतान 3 दिसंबर को हो गया। 11 नवंबर को दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष एक और याचिका संख्या 15636/2024 लगाई गई। विभाग से मिलने वाले माइलेज अलाउंस की मांग की गई। कोर्ट ने कहा, विभाग इस संबंध में आठ सप्ताह में आदेश जारी करे। 12 नवंबर को आईजी की तरफ से कहा गया कि टीए मिल रहा है तो गाड़ी नहीं मिलेगी।

सहायक कमांडेंट ने 28 नवंबर को जीसी नोएडा को माइलेंज अलाउंस के लिए लिखा। तीन दिसंबर को जीसी नोएडा ने सूचना दी कि ट्रैक सूट को लेकर जो शिकायत दी थी, वह रिजेक्ट हो गई है। उसमें कोई सच्चाई नहीं मिली। इसके बाद राहुल ने गत वर्ष 16 दिसंबर को पत्र लिखा कि मेरा अटैचमेंट खत्म कर वापस नोएडा भेजा जाए। उसे 180 दिन हो चुके हैं, इसलिए रिलीव कर दें। 24 दिसंबर को जीसी नोएडा ने आर्डर पास किया कि उसे माइलेज अलाउंस और वाहन नहीं मिलेगा। राहुल ने फरवरी 2025 में रिट पिटीशन संख्या 2081/2025 लगाई। इसमें कई बातें कही गई। सोनीपत से उसे रिलीव किया जाए। माइलेज अलाउंस या सरकारी वाहन दें। उसके खिलाफ चल रही जांच की फाइलें दी जाएं।  

18 फरवरी को कोर्ट द्वारा यह टिप्पणी की गई कि ये ‘व्हिसलब्लोअर’ को प्रताड़ित करने का केस है। विभाग को निर्देश दिया गया कि वह जांच की फाइल कोर्ट में पेश करे। विभाग की ओर से कहा गया कि राहुल के खिलाफ एक जांच पेंडिंग है। 24 मार्च को विभाग ने कोर्ट में जांच फाइल पेश की, लेकिन वह फाइल राहुल को देने से मना कर दिया। कोर्ट ने कहा, चार सप्ताह में काउंटर एफीडेवट पेश करें। 25 मार्च को विभाग ने जीसी सोनीपत को राहुल का अस्थायी हेडक्वार्टर घोषित कर दिया। यह बैक डेट यानी दिसंबर 2024 से किया गया। 9 अप्रैल को जीसी सोनीपत ने राहुल से ट्रासंपोर्ट अलाउंस की रिक्वरी का आर्डर कर दिया। 

जीसी सोनीपत ने ही यह कहा था कि आपको ट्रांसपोर्ट अलाउंस मिल रहा है, इसलिए वाहन नहीं मिलेगा। अब उसकी रिक्वरी के लिए कह दिया। 12 अप्रैल को विभाग ने एक मेमोरेंडम जारी किया। चार्जशीट भी आ गई। इसके बाद राहुल सोलंकी ने डीजी से पर्सनल इंटरव्यू किया। हैरानी की बात है कि डीजी ने तभी कह दिया कि आपको नार्थ ईस्ट में ट्रांसफर करेंगे। राहुल ने 30 अप्रैल को डीजी को डिटेल प्रतिवेदन दिया। उसका तबादला 2026 में होना था, लेकिन उससे पहले ही राहुल को मणिपुर भेज दिया गया।

30 जुलाई को राहुल ने डीजी को फिर से एक प्रतिवेदन दिया। 6 अगस्त को सीआरपीएफ मुख्यालय के डीआईजी सीआर/विजिलेंस की तरफ से राहुल को सिग्नल मिला। उसमें कहा गया कि राहुल ने डीजी को सौंपे प्रतिवेदन में जो आरोप लगाए हैं, वे बेसलेस हैं। इसके बाद 14 अगस्त 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान यह नोट किया गया कि चार माह बाद भी विभाग ने काउंटर शपथ पत्र नहीं दिया है। 19 अगस्त को आईजी ‘पर्स’ के साथ राहुल की हियरिंग हुई, लेकिन कोई राहत नहीं दी गई। 22 अगस्त को राहुल ने डीजीआई सीआर/विजिनेंस व अन्य के खिलाफ पुलिस को शिकायत दी। 

केंद्रीय पुलिस कल्याण भंडार (केपीकेबी) से आवश्यक राशन की आपूर्ति रोक दी गई और उन्हें सीआरपीएफ कोऑपरेटिव शॉप व सीडब्ल्यूए आउटलेट्स में डायवर्ट किया गया। इन दुकानों पर वही सामान ऊंचे दामों पर बेचा गया, जिससे जवानों के परिवारों पर आर्थिक बोझ बढ़ा।
नोएडा जीसी में हॉकी गोलकीपर किट की खरीदारी, लगभग ढाई लाख रुपये की लागत से गोलकीपर किट खरीदी गई, जबकि न तो कैंपस में हॉकी का ग्राउंड था और न ही कोई टीम। यह किट आज भी स्टोर में बेकार पड़ी हुई है।
ग्रेटर नोएडा ग्रुप सेंटर में स्थित विशाल पर्यावरण पार्क, जिसे मूल रूप से जवानों और उनके परिवारों की भलाई, स्वास्थ्य और प्रशिक्षण गतिविधियों के लिए विकसित किया गया था, अपनी मूल भावना से भटक गया है। यह क्षेत्र लगभग सौ एकड़ से अधिक भूमि में फैला हुआ है, जो न केवल सीआरपीएफ कैंपस, बल्कि समीपवर्ती सीआईएसएफ परिसर तक विस्तृत है।
हालांकि, इस पार्क को व्यवहार में एक ‘गोल्फ कोर्स’ का रूप दे दिया गया है। यहां जवानों और उनके परिवारों या बच्चों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित है। इसके विपरीत, लगभग 30 से 40 जवानों को हमेशा अधिकारियों की गोल्फ गतिविधियों में उनकी निजी सहायता के लिए लगाया जाता है। यह न केवल सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग है, बल्कि मानवशक्ति का व्यक्तिगत विलासिता के लिए शोषण को भी दर्शाता है।
आधिकारिक दस्तावेजों में अब भी इस भूमि को ‘पर्यावरण पार्क एवं प्रशिक्षण क्षेत्र’ बताया जाता है, जबकि वास्तविकता यह है कि यह एक ‘एलीट क्लब’ में तबदील हो चुका है। इसके रखरखाव और संचालन के लिए समय-समय पर फर्जी टेंडर जारी किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य केवल औपचारिकता निभाना प्रतीत होता है।
याचिका में यह भी आरोप है कि अंगोला यूनिफ़ॉर्म का एक बड़ा कंसाइनमेंट बिना ‘नित्रा’ (नॉदर्न इंडिया टेक्सटाइल रिसर्च एसोसिएशन) की प्री-डिस्पैच इंस्पेक्शन रिपोर्ट के ही स्वीकार कर लिया गया। निरीक्षण प्रक्रिया पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य थी, लेकिन इसे दरकिनार किया गया। परिणामस्वरूप, यूनिफ़ॉर्म की गुणवत्ता और उसकी उपयोगिता पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं।
सोलंकी ने अपनी याचिका में कहा है कि उन्होंने विभागीय और प्रशासनिक अनियमितताओं की ओर ध्यान दिलाया, जिसके कारण उनके खिलाफ मनगढ़ंत विभागीय जांच शुरू की गई। इस संबंध में उन्होंने थाना इकोटेक-3, ग्रेटर नोएडा में एक पुलिस शिकायत दर्ज कराई है।
शिकायत में उन्होंने नितेंद्र नाथ (सेकेंड-इन-कमांड), हर्षपाल सिंह (सेकेंड-इन-कमांड) और आरके ठाकुर (डीआईजी, सीआर एवं विजिलेंस) की भूमिका पर सवाल उठाया है। याचिका में कहा गया है कि इन्हीं अधिकारियों द्वारा की गई जालसाजी के आधार पर उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाई की गई है। ऐसे मुद्दों को उजागर करने के कारण उन्हें भ्रष्टाचार विरोधी कार्रवाई के बजाय स्थानांतरण और रिलीविंग ऑर्डर देकर परेशान किया गया। बतौर राहुल सोलंकी, अब तक विभाग ने इस मामले में कोई काउंटर एफिडेविट दाख़िल नहीं किया है, जो यह दर्शाता है कि विभाग आरोपों का जवाब देने से बच रहा है।

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