राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अटकलें लगाई हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा न्यायाधीश यशवंत वर्मा की इन-हाउस जांच रिपोर्ट सार्वजनिक करना संवैधानिक दृष्टि से मान्य नहीं है। उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 124 के अंतर्गत किसी जज की अहिलाधिकारी जांच केवल जजेस इनक्वायरी एक्ट के तहत संसद ही कर सकती है, न कि न्यायपालिका स्वयं ।
सिब्बल ने यह भी सवाल उठाया है कि कैसे सरकार या किसी मंत्री ने सीधे तौर पर यह मान लिया कि न्यायाधीश दोषी हैं, जबकि इस नियमानुसार जांच केवल संसद द्वारा गठित समिति के माध्यम से ही हो सकती है और तब ही महाभियोग प्रस्ताव आगे बढ़ सकता है ।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि पिछले मामलों में इन-हाउस रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई थीं, और इस बार ऐसा अचानक क्यों हुआ। सिब्बल ने कहा कि इसका तरीका “खतरे की परिशिष्ट” पेश करता है और इससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता और पारदर्शिता प्रभावित होती है ।
इस पूरी प्रक्रिया में, संसद की जिम्मेदारी स्पष्ट है—50 राज्यसभा या 100 लोकसभा सदस्यों द्वारा पेश महाभियोग प्रस्ताव संसद में जांच समिति बनाने के लिए लंबी प्रक्रिया शुरु करता है। इसमें उच्च न्यायपालिका द्वारा तय प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है ।
सिब्बल ने कहा है कि न्यायपालिका द्वारा प्रक्रिया का उल्लंघन और उसे सार्वजनिक करना “अनुचित” है और इससे संविधान में निहित संतुलन प्रभावित हो सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक जांच पूरा नहीं हो जाता, किसी भी सार्वजनिक राय को आधार नहीं बनाना चाहिए ।