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Tuesday, May 13, 2025

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‘स्तनों को छूने की कोशिश दुष्कर्म नहीं….’, पॉक्सो मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट की टिप्पणी

कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक पॉक्सो के मामले में अजीबोगरीब टिप्पणी की है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा कि किसी नाबालिग के स्तनों को छूने की कोशिश यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के तहत दुष्कर्म के प्रयास की श्रेणी में नहीं, बल्कि गंभीर यौन अपराध की श्रेणी में आता है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की ओर से पॉक्सो के तहत एक आरोपी को दोषी ठहराने और सजा सुनाए जानने के आदेश को निलंबित करते हुए यह टिप्पणी की। ट्रायल कोर्ट ने 12 साल कठोर कारावास की सजा सुनाई थी। बता दें कि पिछले महीने इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से भी इसी तरह की टिप्पणी की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया था।

सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस बिस्वरूप चौधरी की खंडपीठ ने यह भी कहा कि पीड़िता की मेडिकल जांच से यह स्पष्ट नहीं होता कि आरोपी ने दुष्कर्म किया या दुष्कर्म का प्रयास किया। पीड़िता ने बताया कि आरोपी शराब के नशे में उसकी छाती छूने की कोशिश की। पीठ ने कहा कि पीड़िता का बयान और साक्ष्य पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 10 के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न के आरोप को सही ठहरा सकता है, लेकिन प्रथम दृष्टया दुष्कर्म के प्रयास के अपराध को साबित नहीं करता।

खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए यह भी कहा कि यदि अंतिम सुनवाई के बाद आरोप को घटाकर केवल गंभीर यौन उत्पीड़न कर दिया जाता है, तो दोषी के कारावास की अवधि भी 12 वर्षों से घटाकर 5 से 7 वर्षों के बीच कर दी जाएगी, जैसा कि गंभीर यौन उत्पीड़न के मामलों में प्रावधान है। विशेष रूप से, इस मामले में दोषी पहले ही 28 महीने जेल की सजा काट चुका है। खंडपीठ ने आदेश दिया कि दोषसिद्धि और सजा के आदेश का प्रभाव अपील के निपटारे या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो, निलंबित रहेगा। साथ ही, जुर्माना अदा करने पर भी रोक लगा दी गई है। हालांकि, खंडपीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी ये टिप्पणियां अपील की अंतिम सुनवाई को किसी भी तरह प्रभावित नहीं करेंगी।

ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी सजा
ट्रॉयल कोर्ट ने आरोपी के खिलाफ पॉक्स अधिनियम की धारा 10 और भारतीय दंड संहिता की धारा 448/376(2)(सी)/511 के तहत आरोप तय किए थे और उसे 12 वर्ष के कठोर कारावास तथा 50,000 के जुर्माने की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने कहा कि उसे झूठे आरोप में फंसाया गया और जमानत की मांग की।

 इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम ने लगाई थी रोक
पिछले दिनों इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी पॉक्सो के तहत एक मामले में ऐसा ही फैसला सुनाया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। शीर्ष अदालत ने मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के खिलाफ तल्ख टिप्पणी भी की थी और कहा था कि संवेदनशील मामलों में न्यायाधीशों को अनावश्यक टिप्पणी करने से बचना चाहिए।

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