केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीएपीएफ’ के 11 लाख जवानों/अफसरों ने गत वर्ष ‘पुरानी पेंशन’ बहाली के लिए दिल्ली हाईकोर्ट से अपने हक की लड़ाई जीती थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया। इस मामले में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। अब सीएपीएफ कर्मियों को पुरानी पेंशन मिलेगी या नहीं, इस बाबत अगले माह केंद्र सरकार, सुप्रीम कोर्ट में जवाब देगी। केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट में फरवरी 2024 तक स्थगन आदेश मिला था। अगले माह स्थगन आदेश की अवधि खत्म हो रही है। एक फरवरी को पेश होने वाले अंतरिम बजट में पुरानी पेंशन को लेकर केंद्र सरकार का स्टैंड मालूम चल सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल 11 जनवरी को दिए अपने एक अहम फैसले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ‘सीएपीएफ’ को ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ माना था। अदालत ने इन बलों में लागू ‘एनपीएस’ को स्ट्राइक डाउन करने की बात कही। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, चाहे कोई आज इन बलों में भर्ती हुआ हो, पहले कभी भर्ती हुआ हो या आने वाले समय में भर्ती होगा, सभी जवान और अधिकारी, पुरानी पेंशन स्कीम के दायरे में आएंगे। केंद्र सरकार ने इस फैसले को भी लागू नहीं किया। इसके विपरित केंद्र सरकार ने उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्टे ले लिया। इस मामले में कॉन्फेडरेसन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात का समय मांगा था। अभी तक एसोसिएशन को पीएम से मिलने का समय नहीं मिल सका है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि ‘सीएपीएफ’ में आठ सप्ताह के भीतर पुरानी पेंशन लागू कर दी जाए। अदालत की वह अवधि गत वर्ष होली पर खत्म हो गई। तब तक केंद्र सरकार, उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट में तो नहीं गई, मगर अदालत से 12 सप्ताह का समय मांग लिया था। जब वह अवधि भी खत्म हो गई तो केंद्र सरकार ने ओपीएस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया।
क्या सरकार देगी पुरानी पेंशन …
डीओपीटी के सूत्रों का कहना है, यह केस तो सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। इस पर टिप्पणी नहीं की जा सकती। हालांकि सरकार का जो रूख केंद्रीय कर्मियों के लिए देखने को मिल रहा है, उसके मद्देनजर, सीएपीएफ में पुरानी पेंशन लागू होना आसान नहीं है। पुरानी पेंशन को लेकर केंद्र सरकार, बहुत जल्द अंतिम फैसला ले सकती है। एक फरवरी को यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि सरकारी कर्मी, पुरानी पेंशन के दायरे में आएंगे या एनपीएस ही जारी रहेगा। केंद्र ने सरकारी कर्मियों के साथ टकराव से बचने का रास्ता निकाल लिया है। एक फरवरी को लोकसभा में पेश होने वाले अंतरिम बजट में ओपीएस/एनपीएस को लेकर, सरकार अपनी स्थिति को स्पष्ट कर सकती है। ये तय है कि केंद्र सरकार, ओपीएस बहाली नहीं करेगी, लेकिन एनपीएस को ज्यादा से ज्यादा आकर्षक बनाने का मसौदा सामने आ सकता है। एनपीएस में जमा हो रहा कर्मियों का दस प्रतिशत पैसा और सरकार का 14 प्रतिशत पैसा, इसमें बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। पुरानी पेंशन में जिस तरह से ‘गारंटीकृत’ शब्द, कर्मियों को एक भरोसा देता है, कुछ वैसा ही एनपीएस में भी जोड़ा जा सकता है। डीए/डीआर की दरों में बढ़ोतरी होने पर एनपीएस में उसका आंशिक फायदा, कर्मियों को कैसे मिले, इस पर कुछ नया देखने को मिल सकता है।
केंद्र सरकार, कई मामलों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को सशस्त्र बल मानने को तैयार नहीं थी। पुरानी पेंशन का मुद्दा भी इसी चक्कर में फंसा हुआ था। एक जनवरी 2004 के बाद केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्ती हुए सभी कर्मियों को पुरानी पेंशन के दायरे से बाहर कर दिया गया था। उन्हें एनपीएस में शामिल कर दिया गया। सीएपीएफ को भी सिविल कर्मचारियों के साथ पुरानी पेंशन से बाहर कर दिया। उस वक्त सरकार का मानना था कि देश में सेना, नेवी और वायु सेना ही सशस्त्र बल हैं। बीएसएफ एक्ट 1968 में कहा गया है कि इस बल का गठन भारत संघ के सशस्त्र बल के रूप में किया गया था। इसी तरह सीएपीएफ के बाकी बलों का गठन भी भारत संघ के सशस्त्र बलों के रूप में हुआ है। कोर्ट ने माना है कि सीएपीएफ भी भारत के सशस्त्र बलों में शामिल हैं। इस लिहाज से उन पर भी एनपीएस लागू नहीं होता। सीएपीएफ में कोई व्यक्ति चाहे आज भर्ती हुआ हो, पहले हुआ हो या भविष्य में हो, वह पुरानी पेंशन का पात्र रहेगा। गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 6 अगस्त 2004 को जारी पत्र में घोषित किया गया है कि गृह मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत ‘केंद्रीय बल’ ‘संघ के सशस्त्र बल’ हैं।
फौजी महकमे के सभी कानून लागू होते हैं …
सीएपीएफ के जवानों और अधिकारियों का कहना है कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में फौजी महकमे वाले सभी कानून लागू होते हैं। सरकार खुद मान चुकी है कि ये बल तो भारत संघ के सशस्त्र बल हैं। इन्हें अलाउंस भी सशस्त्र बलों की तर्ज पर मिलते हैं। इन बलों में कोर्ट मार्शल का भी प्रावधान है। इस मामले में सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है। अगर इन्हें सिविलियन मानते हैं तो आर्मी की तर्ज पर बाकी प्रावधान क्यों हैं। फोर्स के नियंत्रण का आधार भी सशस्त्र बल है। जो सर्विस रूल्स हैं, वे भी सैन्य बलों की तर्ज पर बने हैं। अब इन्हें सिविलियन फोर्स मान रहे हैं तो ऐसे में ये बल अपनी सर्विस का निष्पादन कैसे करेंगे। इन बलों को शपथ दिलाई गई थी कि इन्हें जल थल और वायु में जहां भी भेजा जाएगा, ये वहीं पर काम करेंगे। सिविल महकमे के कर्मी तो ऐसी शपथ नहीं लेते हैं।
ओपीएस नहीं तो ‘पुलवामा डे’ से आंदोलन शुरु …
कॉन्फेडरेसन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन एवं पूर्व एडीजी एचआर सिंह और महासचिव रणबीर सिंह कह चुके हैं कि अर्धसैनिक बलों को ओपीएस नहीं मिला तो आंदोलन होगा। 14 फरवरी 2024 को पुलवामा डे के अवसर पर लाखों अर्धसैनिक परिवार अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरु कर सकते हैं। सीएपीएफ में ओपीएस की लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। इसके लिए लगातार आंदोलन किया जा रहा है। प्रधानमंत्री कार्यालय से बुलावा आता है तो उनके समक्ष ‘केंद्रीय अर्धसैनिक बल’ के जवानों की व्यथा रखी जाएगी। उनकी ड्यूटी की नेचर के मुताबिक, वे सिविल फोर्स नहीं, बल्कि ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ हैं। ऐसे में उन्हें ‘पुरानी पेंशन’ का लाभ दिया जाए। एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि कोई खिलाड़ी ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीत कर आता है तो उसे केंद्र सरकार पांच करोड़ रुपये देती है। राज्य सरकार भी दो करोड़ रुपये दे देती है। एक प्लाट भी मिलता है और दूसरी कई सुविधाओं का अंबार लगता है। जिसे ये सब मिलता है, वह एक जिंदा व्यक्ति है। दूसरी तरफ सीएपीएफ के जवान को देखें, वह देश के लिए शहीद हो जाता है। वह दोबारा से जीवन में नहीं आ सकता। सरकार उसके मां बाप को एक तय राशि देकर राम-राम बोल देती है।