कांग्रेस ने कहा है कि नोटबंदी पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय केवल प्रक्रिया तक सीमित था। सर्वोच्च न्यायालय ने नोटबंदी के फैसले के कारण हुए परिणामों पर कोई टिप्पणी नहीं की है, और इसलिए इसे नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट की क्लीन चिट की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। पार्टी ने कहा है कि नोटबंदी के कारण देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों को भारी नुकसान हुआ है और वे इसका नुकसान अभी भी झेल रहे हैं। कांग्रेस की यह टिप्पणी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भाजपा की उस प्रतिक्रिया के बाद आई है, जिसमें उसने इसे नोटबंदी पर उठ रहे सभी सवालों का जवाब बताया था।
जयराम रमेश ने दी प्रतिक्रिया
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोमवार को एक बयान जारी कर कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने केवल इस संदर्भ में अपना निर्णय दिया है कि क्या नोटबंदी की घोषणा से पूर्व आरबीआई अधिनियम, 1934 की धारा 26(2) की समुचित अनुपालना की गई थी, अथवा नहीं। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी इससे कम या ज्यादा कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि इसके बाद भी पीठ के एक न्यायाधीश ने अपनी असहमति दर्ज करते हुए कहा है कि संसद को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए था। इससे भी यह साबित होता है कि सरकार ने देश की सर्वोच्च जनप्रतिनिधियों की संस्था संसद को इतना बड़ा फैसला लेने के लिए अपने भरोसे में नहीं लिया।
उन्होंने कहा कि इस निर्णय में नोटबंदी के असर पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है। उन्होंने नोटबंदी को एक विनाशकारी निर्णय बताया और कहा कि इस निर्णय ने विकास की गति को क्षति पहुंचाई। सूक्ष्म, लघु और मझोले स्तर की इकाईयों को पंगु बनाया और अनौपचारिक क्षेत्र को समाप्त कर दिया। इससे देश के लाखों लोगों की अजीविका को नष्ट कर दिया गया।
कांग्रेस नेता ने कहा कि कई स्तरों पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी को नोटबंदी को सही ठहराने की तरह प्रचारित किया जा रहा है जो कि पूरी तरह गलत है। उन्होंने कहा कि चूंकि सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी नोटबंदी के परिणामों को लेकर नहीं थी, इस तरह की बात नहीं की जानी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि नोटबंदी को लेकर सरकार ने जो भी तर्क दिए थे, सभी गलत साबित हुए हैं। आज का अनुभव बताता है कि सरकार के दावे के उलट नकदी के प्रचलन में कोई कमी नहीं लाई जा सकी है। उलटे इसकी मात्रा लगातार बढ़ती गई है। इसी प्रकार आतंकवाद और नक्सलवाद की कमर तोड़ने के सरकार के दावे भी विफल साबित हुए हैं।
नहीं हासिल हुए कोई भी लक्ष्य
कांग्रेस नेता ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में यह कहने के लिए कुछ भी नहीं है कि विमुद्रीकरण के घोषित उद्देश्यों को पूरा किया गया था या नहीं। उन्होने कहा कि जैसा कि सरकार का कहना है उसके विपरीत नोटबंदी प्रचलन में मुद्रा को कम करना, कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ना, नकली मुद्रा पर अंकुश लगाना, आतंकवाद को समाप्त करना और काले धन के खुलासे जैसे किसी भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाई है।
नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 के बहुमत से 1,000 और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के सरकार के 2016 के फैसले को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति एसए नजीर की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में बहुत संयम बरता जाना चाहिए और अदालत फैसले की न्यायिक समीक्षा कर कार्यपालिका के विवेक की जगह नहीं ले सकती।
हालांकि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने आरबीआई एक्ट की धारा 26 (2) के तहत केंद्र की शक्तियों के बिंदु पर बहुमत के फैसले से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि 500 और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने का काम एक कानून के माध्यम से किया जाना चाहिए था, न कि अधिसूचना के माध्यम से।
उन्होंने कहा, ‘संसद को नोटबंदी पर कानून पर चर्चा करनी चाहिए थी, यह प्रक्रिया गजट अधिसूचना के माध्यम से नहीं की जानी चाहिए थी। देश के लिए इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद को अलग नहीं रखा जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से इस फैसले के पहले कोई स्वतंत्र विचार नहीं लिया गया और केवल उनकी राय मांगी गई थी, जिसे सिफारिश नहीं कहा जा सकता है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी राम सुब्रमणियन की पीठ ने कहा कि केंद्र की निर्णय लेने की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण नहीं हो सकती क्योंकि आरबीआई और केंद्र सरकार ने इस मसले पर विचार-विमर्श किया है। शीर्ष अदालत ने आठ नवंबर 2016 को केंद्र की ओर से घोषित नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया।