सुप्रीम कोर्ट में CAPF कैडर अधिकारियों की ‘सुप्रीम’ जीत हुई है। केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (CAPF) के लगभग 20000 कैडर अधिकारियों को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने केंद्र सरकार की रिव्यू पिटीशन (पुनर्विचार याचिका) को खारिज कर दिया। इस फैसले के साथ मई 2024 में कैडर अधिकारियों के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय को बरकरार रखा गया है। केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है। सरकार ने अदालत के मई 2024 के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में “संगठित समूह-ए सेवा” (Organised Group A Service – OGAS) का दर्जा पूरी तरह लागू होगा, केवल NFFU (Non-Functional Financial Upgradation) तक सीमित नहीं रहेगा। अब रिव्यू पिटीशन खारिज होने से यह आदेश अंतिम रूप से प्रभावी हो गया है। इससे केंद्र सरकार पर CAPF कैडर अधिकारियों को पदोन्नति, वेतन वृद्धि और अन्य प्रशासनिक लाभ देने का दबाव बढ़ गया है।
मई 2024 के फैसले में अदालत ने कहा था कि CAPF (BSF, CRPF, CISF, ITBP, SSB आदि) को संगठित सेवा का पूरा दर्जा दिया जाए। केवल NFFU ही नहीं बल्कि सभी प्रशासनिक पदोन्नति और नीतिगत लाभ भी कैडर अधिकारियों को मिलें। केंद्र सरकार को 6 महीने में कैडर रिव्यू पूरा करने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने यह भी कहा था कि इन बलों में आईपीएस की प्रतिनियुक्ति (Deputation) को धीरे-धीरे खत्म किया जाए ताकि कैडर अधिकारियों को नेतृत्व के अवसर मिल सकें।
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में लगभग 10 लाख से अधिक जवान हैं, जिनमें से करीब 20 हजार कैडर अफसर हैं। इन अफसरों को 15–20 साल तक पदोन्नति नहीं मिलती। कई अधिकारी कमांडेंट के पद से ही रिटायर हो जाते हैं, जबकि IPS अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर आकर शीर्ष पदों (DIG, IG, ADG) पर नियुक्त हो जाते हैं। DOPT नियम कहता है कि हर 5 साल में कैडर रिव्यू होना चाहिए, लेकिन 2016 से अब तक नहीं हुआ।
पूर्व एडीजी एस.के. सूद और अधिवक्ता सर्वेश त्रिपाठी जैसे वरिष्ठ अफसरों ने अदालत को बताया था कि 1986 से CAPF को OGAS माना गया था, पर इसे व्यवहार में लागू नहीं किया गया। 2006 में वेतन आयोग ने NFFU की सिफारिश की, फिर भी सरकार ने लागू नहीं किया। नतीजतन अधिकारी नेतृत्व पदों से वंचित रह गए और वित्तीय नुकसान झेलते रहे।
दस्तावेज़ बताते हैं कि 1955 के Force Act या 1970 के गृह मंत्रालय के पत्रों में IPS के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था। 1960 के दशक में ही CAPF अपने स्वयं के अफसर तैयार करने लगी थी। 1970 में गृह मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर जे.सी. पांडे ने भी कहा था — “आईपीएस के लिए फिक्स्ड पद न रखे जाएं, इससे कैडर अफसरों के अवसर प्रभावित होंगे।”
हालांकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम है, लेकिन अधिकारी अब भी इस बात को लेकर आशंकित हैं कि सरकार आदेश लागू करने में देरी न करे। OPS (Old Pension Scheme) के मामले में भी जीत के बावजूद सरकार ने रिव्यू दायर किया था, जिससे मामला अटक गया।
सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले ने CAPF कैडर अधिकारियों की दशकों पुरानी लड़ाई को निर्णायक मोड़ दिया है। अब केंद्र सरकार के पास कोई कानूनी विकल्प नहीं बचा है। यदि आदेश समय पर लागू हुआ, तो हजारों अफसरों को पदोन्नति, वित्तीय लाभ और नेतृत्व के अवसर मिल सकेंगे, जो उन्हें पिछले तीन दशकों से नहीं मिले थे।

