Waqf Bill: वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति की बैठक के दौरान हुए बवाल के बाद निलंबित विपक्षी सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखा है। इस दौरान विपक्षी सांसदों ने जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल पर कई आरोप लगाए हैं। लोकसभा अध्यक्ष को लिखे पत्र में विपक्षी सांसदों ने लिखा- ‘…जब आज सुबह 11 बजे बैठक शुरू हुई, तो हम विपक्षी सदस्यों ने अध्यक्ष की तरफ से कार्यवाही के संचालन के तरीके के खिलाफ अत्यंत सम्मान के साथ अपनी आवाज उठाई।
‘हमारे दावों पर अध्यक्ष ने नहीं दिया जवाब’
सांसदों ने आगे लिखा, ‘हमने नियमों में निर्धारित उचित प्रक्रिया की अनदेखी करके जेपीसी के एकतरफा और अनुचित तरीके से काम करने पर प्रकाश डाला। यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है कि 24 और 25 तारीख को बैठक के लिए पूर्व में दिए गए नोटिस के बाद से, हम सदस्यों ने 31 तारीख को संसद सत्र शुरू होने के कारण 27 से 30 तारीख तक निर्वाचन क्षेत्र/राज्यों में अपने कार्यक्रम तैयार किए और इस प्रकार 27वीं बैठक को स्थगित करने की प्रार्थना की। जबकि हमने इन उचित दावों को सभ्य तरीके से अध्यक्ष के सामने रखा, उन्होंने जवाब देने का प्रयास भी नहीं किया।’
‘हमने लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज उठाई’
‘चूंकि हम सभी ने अपमानित महसूस किया, इसलिए हम खड़े हुए और अपनी मांगों को सुनने के लिए लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज उठाई। इस बीच, अध्यक्ष ने किसी से फोन पर बात की और अचानक और आश्चर्यजनक रूप से, उन्होंने चिल्लाते हुए हमारे निलंबन का आदेश दिया… हितधारकों की तरफ से उठाए गए इन मुद्दों को समग्र रूप से संबोधित करने के लिए जेपीसी की तरफ से एक व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है। इन परिस्थितियों में जेपीसी की कार्यवाही को बिना सोचे समझे आगे बढ़ाना, छुपे हुए द्वेष से भरी एक पहेली के अलावा और कुछ नहीं है।
‘जेपीसी अध्यक्ष के पास निलंबन का अधिकार नहीं है’
पत्र में लिखा गया है कि, ‘हमारा मानना है कि जेपीसी के अध्यक्ष के पास समिति के सदस्यों को निलंबित करने का अधिकार नहीं है। इसलिए यह प्रार्थना की जाती है कि जेपीसी के अध्यक्ष को कार्यवाही को पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से संचालित करने का निर्देश दिया जाए। अध्यक्ष को 27वीं बैठक स्थगित कर देनी चाहिए ताकि विपक्षी सदस्यों को नियमों और प्रक्रिया से हटकर अपनी दलीलें/दावे रखने के लिए पर्याप्त समय और अवसर मिल सके, ताकि संसद का लोकतंत्र सुनिश्चित हो सके, जिस पर राष्ट्र को अभी भी भरोसा है।’
10 विपक्षी सांसद दिनभर के लिए निलंबित
जेपीसी की बैठक में हुए हंगामे के बाद वक्फ संशोधन विधेयक 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति की से सभी 10 विपक्षी सांसदों को दिनभर के लिए निलंबित कर दिया गया। निलंबित विपक्षी सांसदों में कल्याण बनर्जी, मोहम्मद जावेद, ए राजा, असदुद्दीन ओवैसी, नासिर हुसैन, मोहिबुल्लाह, एम अब्दुल्ला, अरविंद सावंत, नदीमुल हक, इमरान मसूद शामिल हैं।
30 और 31 जनवरी को बैठक बुलाने की अपील की
विपक्षी सांसदों ने लिखा, 21 जनवरी को समिति के लखनऊ दौरे के समय अध्यक्ष से यह अनुरोध किया गया था कि 24 और 25 जनवरी की बैठक को स्थगित कर 30 और 31 जनवरी कर दिया जाए। सांसद संसद की कार्यवाही में भाग लेने दिल्ली पहुंचेंगे तो जेपीसी की बैठक में भी हिस्सा ले लेंगे क्योंकि 21 जनवरी की बैठक के बाद तुरंत बाद सारी सामग्री समेट कर फिर दिल्ली पहुंचना व्यवहारिक नहीं है। इस मांग पर अध्यक्ष ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो ए राजा ने विपक्षी सांसदों की ओर से 22 जनवरी को फिर से पाल से अनुरोध किया कि बैठक 30 और 31 जनवरी को आयोजित की जाए। अध्यक्ष ने इन मांगों पर पूरी तरह चुप्पी साध ली। विपक्ष ने कहा, हमने अध्यक्ष से यह आग्रह भी किया कि समिति के दौरों के दौरान जमा किए गए सबूतों और दस्तावेजों को सभी सदस्यों के बीच वितरित किया जाए। लेकिन न जो भी कारण हो, जिन्हें अध्यक्ष ही बेहतर जानते हैं, बैठक टालने की हमारी सभी मांगे ठुकरा दी गईं।
मनमानी कर रहे हैं अध्यक्ष : राजा
बाद में विपक्षी सदस्यों ने मीडिया से बात करते हुए भी पाल पर कई आरोप लगाए। राजा ने कहा, अध्यक्ष ने एक साक्षात्कार में कहा कि 25 जनवरी को विधेयक पर खंडवार चर्चा की जाएगी और मसौदा रिपोर्ट 29 जनवरी को जेपीसी के सामने रखी जाएगी। मगर इसमें प्रक्रिया कहां है। सारी कार्यवाही और सारे फैसले अध्यक्ष मनमाने तरीके से कर रहे हैं। हमने लोकसभा अध्यक्ष से मांग की है कि पाल को निर्देश दें कि विपक्ष के साथ बराबरी का व्यवहार करें और तारीखों के निर्धारण और बहस की समयावधि तय करने में हमारी राय भी ली जाए। पूरी कार्यवाही पारदर्शी तरीके से हो।
महज कठपुतली हैं पाल : बनर्जी
तृणमूल के कल्याण बनर्जी ने आरोप लगाया, समिति की बैठक में विपक्षी सदस्यों को अपमानित किया गया और दिल्ली चुनाव के कारण जेपीसी रिपोर्ट को मंजूरी देने में जल्दबाजी की जा रही है। पाल किसी और के निर्देश पर काम करे हैं। वह महज कठपुतली हैं। संसदीय प्रक्रियाओं का मजाक बना दिया गया है।