केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा ब्रिटिश-युग के भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) को बदलने के लिए शुक्रवार को लोकसभा में पेश किया गया भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) विधेयक में अप्राकृतिक यौन संबंध और व्यभिचार (दूसरी स्त्री के साथ संबंध) पर दो विवादास्पद प्रावधानों को खत्म करने का प्रस्ताव है। इन प्रावधानों को 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्रमशः कमजोर और रद्द कर दिया गया था।
आईपीसी की धारा 377 कहती है, जो कोई भी स्वेच्छा से किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाता है, उसे आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा या एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे दस साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से धारा 377 के एक हिस्से को छह सितंबर, 2018 को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था। हालांकि, यह प्रावधान अभी भी नाबालिगों के खिलाफ, महिला की सहमति के विरुद्ध और पशु के साथ संबंध बनाने के खिलाफ अप्राकृतिक यौन अपराधों से निपटने के लिए कानून की किताब में मौजूद है। नए बीएनएस बिल में अप्राकृतिक यौन संबंध को लेकर कोई प्रावधान नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से आईपीसी की धारा 497 को भी 27 सितंबर, 2018 को कानून की किताबों से हटा दिया था। धारा 497 में व्यभिचार पर पुरुषों के लिए एक आपराधिक अपराध का प्रावधान था, लेकिन इसमें महिलाओं को दंडित करने का प्रावधान नहीं था।
धारा 497 के तहत, अगर कोई पुरुष यह जानते हुए कि वह अन्य पुरुष की पत्नी है बिना उसके पति की सहमति या मिलीभगत के यौन संबंध बनाता है, तो ऐसा संबंध दुष्कर्म के अपराध की श्रेणी में नहीं आता, लेकिन उसे व्यभिचार के अपराध का दोषी माना जाएगा और उसे किसी भी अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना लगाया जा सकता है या दोनों। ऐसे मामले में पत्नी को बहकानेवाला के रूप में दंडित नहीं किया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि व्यभिचार के कार्य अपराध के रूप में योग्य नहीं होंगे, लेकिन वे अभी भी नागरिक कार्रवाई और तलाक के लिए आधार होंगे। लेकिन बीएनएस बिल में व्यभिचार के अपराध के संबंध में कोई प्रावधान नहीं है।
2017 में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम पारित होने तक आत्महत्या का प्रयास आईपीसी की धारा 309 के तहत दंडनीय अपराध था। जिसे धारा 309 के लिए एक बड़ा अपवाद मानकर आत्महत्या को अपराध की श्रेणी से हटा दिया गया। मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017 की धारा 115 के तहत, आत्महत्या के प्रयास के मामले में गंभीर तनाव का तर्क दिया गया। इसमें कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में किसी भी बात के बावजूद, आत्महत्या करने का प्रयास करने वाले किसी भी व्यक्ति को, जब तक कि अन्यथा साबित न हो, गंभीर तनाव में माना जाएगा और उक्त संहिता के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और दंडित नहीं किया जाएगा।
बीएनएस विधेयक आत्महत्या के प्रयास को आपराध मानता है
इसमें आगे कहा गया है कि उपयुक्त सरकार का कर्तव्य होगा कि वह गंभीर तनाव से जूझ रहे और आत्महत्या करने का प्रयास करने वाले व्यक्ति को देखभाल, उपचार और पुनर्वास प्रदान करे, ताकि आत्महत्या के प्रयास की पुनरावृत्ति के जोखिम को कम किया जा सके। लेकिन, बीएनएस विधेयक, 2023 में आईपीसी की धारा 309 की तरह आत्महत्या के प्रयास के अलग अपराध का कोई उल्लेख नहीं है। नए बिल में धारा 224 है जो आत्महत्या के प्रयास को अपराध मानती है। बीएनएस बिल की धारा 224 के अनुसार, जो कोई भी किसी लोक सेवक को उसके आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन करने के लिए मजबूर करने या रोकने के इरादे से आत्महत्या करने का प्रयास करेगा, उसे साधारण कारावास से दंडित किया जाएगा। जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना लगाया जा सकता है या दोनों लागू हो सकता है।
राजद्रोह के अपराध को खत्म करना और मॉब लिंचिंग में सजा नए विधेयक का मुख्य आकर्षण
इसके साथ ही मानहानि और महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े ऐसे ही कई अन्य प्रावधान हैं, जिन्हें बदलने की मांग की जा रही है। बीएनएस विधेयक, 2023 का एक मुख्य आकर्षण यह है कि यह आईपीसी के तहत राजद्रोह के अपराध को खत्म करने का प्रावधान करता है और मॉब लिंचिंग और नाबालिगों से दुष्कर्म जैसे अपराधों के लिए अधिकतम सजा के रूप में मौत की सजा का प्रावधान करता है।
आईपीसी में जहां 511 धाराएं हैं, वहीं बीएनएस बिल में 356 प्रावधान हैं। नए विधेयक में मॉब लिंचिंग को एक अलग अपराध बनाने का प्रस्ताव है। इसी तरह, बीएनएस विधेयक धारा 302 के तहत “झपटमारी” पर एक नया प्रावधान बनाने का प्रयास करता है। विधेयक में कहा गया है कि जो कोई भी झपटमारी करेगा उसे तीन साल तक की कैद की सजा होगी और जुर्माना भी देना होगा। पहली बार आतंकवाद शब्द को बीएनएस बिल के तहत परिभाषित किया गया है जो आईपीसी में नहीं था।
बीएनएस विधेयक के प्रावधान 111 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता को डराने या कोई कार्य करके सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ना के इरादे से भारत या किसी विदेशी देश में कोई कृत्य करता है तो उसे आतंकवादी कृत्य किया गया माना जाता है।
आईपीसी के अनुसार, मानहानि के अपराध में दो साल तक की साधारण कैद या जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है, जबकि बीएनएस बिल में मानहानि के अपराध में दो साल तक की साधारण कैद या जुर्माना, या दोनों या सामुदायिक सेवा का प्रावधान है।
महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों पर बीएनएस बिल की धारा 69 में कहा गया है, जो कोई, धोखे से या बिना किसी इरादे के किसी महिला से शादी करने का वादा करता है और उसके साथ यौन संबंध बनाता है उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा जिसे दस साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि धोखाधड़ी वाले तरीकों में रोजगार या पदोन्नति का झूठा वादा, प्रलोभन देना या पहचान छिपाकर शादी करना शामिल होगा।