आम आदमी पार्टी ने आखिरकार दिल्ली में महिला कार्ड खेलते हुए आतिशी को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। अब दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इसी महिला कार्ड और जनता की अदालत वाले दांव के साथ आने वाले विधानसभा के चुनाव में जनता के बीच जाएंगे। रणनीतिकारों का मानना है कि आने वाले विधानसभा के चुनाव में राजनीतिक नजरिए से यह “कांबिनेशन” आम आदमी पार्टी को फायदा पहुंचा सकता है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि जिस आक्रामकता और इमोशनल दांव के साथ दिल्ली के विधानसभा चुनावों की पिच तैयार हुई है, उसमें कांग्रेस को आम आदमी पार्टी की ओर से हिस्सेदारी मिलेगी इसका अनुमान कम ही है। वैसे भी दिल्ली में कांग्रेस के नेता आम आदमी पार्टी को लेकर लगातार हमलावर है। इसलिए आने वाले विधानसभा के चुनाव में दोनों दलों की सियासी राहें अलग-अलग ही मानी जा रही है।
आम आदमी पार्टी ने मंगलवार को अपनी मंत्री आतिशी को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया। इस घोषणा के साथ आम आदमी पार्टी ने अपने वोट बैंक में महिलाओं का बड़ा कार्ड भी खेल दिया। क्योंकि बीते कुछ समय से आम आदमी पार्टी की सरकार में सबसे सक्रिय नेता के तौर पर आतिशी ही सबसे आगे थीं। ऐसे में उनका मुख्यमंत्री बना कर पार्टी ने अपने समर्थकों में यह संदेश दिया है कि वह महिला मुख्यमंत्री के सहारे महिलाओं के बड़े वोट बैंक को भी आने वाले चुनाव में एक बड़े संदेश के साथ साधेंगे। वरिष्ठ पत्रकार अभिमन्यु सिंह कहते हैं कि आतिशी के मुख्यमंत्री बनने से कांग्रेस के सामने भी बड़ी चुनौतियां हैं। क्योंकि आतिशी ने जिस तरीके से अरविंद केजरीवाल समेत अन्य बड़े नेताओं के जेल में रहते हुए काम किया है वह मुख्यमंत्री ना रहते हुए भी मुख्यमंत्री जैसा ही काम था। और इसको लेकर कांग्रेस के बड़े नेता लगातार अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर निशाना भी साधते रहते थे।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दिल्ली में महिला मुख्यमंत्री अभी तक कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के ही खाते में थी। वरिष्ठ पत्रकार बृजेश झा कहते हैं कि आम आदमी पार्टी के भीतर इस बात को लेकर एक मंथन तो था ही कि इसका मुकाबला कैसे किया जाए। अब जब अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा देकर महिला नेता आतिशी को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया है। तो यह कमी भी अब आम आदमी पार्टी के हिस्से नहीं रही। झा कहते हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी शुरुआत से ही महिलाओं को अपना हितैषी और बड़े तबके का वोटर मानती रही है। ऐसे में जब आतिश आने वाले विधानसभा के चुनाव में बतौर मुख्यमंत्री जनता के बीच जाएंगी तो पार्टी इसका बड़े स्तर पर अपने पक्ष में करने का पूरा माहौल बनाएगी। बृजेश कहते हैं कि कांग्रेस के लिए यह चुनौती छोटी नहीं है। क्योंकि दिल्ली में जब भी विधानसभा के चुनाव होते रहे हैं तो कांग्रेस पार्टी अपनी महिला मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम और उनके किए गए कामों को आगे करती रही है। हालांकि उनका मानना है कि आतिशी का कुछ महीनो के मुख्यमंत्री बने रहने पर शीला दीक्षित से काम के मामले में तो मुकाबला नहीं हो सकता। लेकिन आम आदमी पार्टी की महिला मुख्यमंत्री दिए जाने वाली रणनीति का बड़े स्तर पर सियासी हथियार बनाएगी।
पत्रकार बृजेश कहते हैं कि दो दिन पहले ही आतिशी ने दिल्ली में सभी 70 विधानसभा जीतने का दावा किया था। ऐसे में एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि आम आदमी पार्टी फिलहाल अभी कांग्रेस के साथ किसी तरीके के समझौते के मूड में नहीं दिखाई दे रही है। ऐसे में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच सब कुछ सामान्य रहेगा यह थोड़ा मुश्किल भी लग रहा है। कांग्रेस पार्टी के नेता भी दबी जुबान से इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि जिन विवादों के साथ अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेताओं के नाम आ रहा है, उसमें अगर कांग्रेस पार्टी बगैर गठबंधन के चुनाव लड़ती है तो उसको ज्यादा फायदा मिल सकता है।
दरअसल कांग्रेस पार्टी के भीतर एक बड़ा धड़ा आम आदमी पार्टी के साथ दिल्ली में गठबंधन न करने को लेकर लगातार आला कमान पर दबाव बना रहा है। पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हरियाणा में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन न होने से उनकी पार्टी को बड़ा फायदा होगा। वह कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ हुए गठबंधन में राजनीतिक ताकत का अंदाजा पहले ही हो चुका है। उनका कहना है कि अब जब आतिशी को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी गई है तो कांग्रेस पार्टी को भी अभी से अपनी पूरी फील्डिंग सजानी होगी।
इसके पीछे उनका तर्क है कि अरविंद केजरीवाल जनता की अदालत वाले दांव का पूरा सियासी फायदा उठाएंगे। ऐसे में कांग्रेस पार्टी किसी तरीके की कोई कमजोरी अपनी तरफ से नहीं रखने वाली है। उनकी पार्टी भी पूरी मजबूती के साथ दिल्ली में चुनावी समर को लेकर कमर कस चुकी है। हालांकि गठबंधन का होना या ना होना यह फैसला तो आला कमान करेगा। लेकिन पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की ओर से केजरीवाल से गठबंधन करने की बजाय अकेले सियासी समर में उतरना ज्यादा फायदेमंद बताया जा रहा है।