तीस्ता को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने ज़मानत दे दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा याचिकाकर्ता एक महिला है जो दो महीने से हिरासत में है. जो मामला है वो 2002-2010 के बीच के दस्तावेज का है. जांच मशीनरी को सात दिनों तक उससे हिरासत में पूछताछ का मौका मिला होगा. रिकॉर्ड में मौजूद परिस्थितियों को देखते हुए हमारा विचार है कि हाईकोर्ट को मामले के लंबित रहते समय अंतरिम जमानत पर विचार करना चाहिए था.
निडर, निष्पक्ष, निर्भीक चुनिंदा खबरों को पढने के लिए यहाँ >> क्लिक <<करें
CJI यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु भट की बेंच ने मामले की सुनवाई की. गुजरात सरकार की ओर से SG तुषार ने कहा कि कल सुप्रीम कोर्ट ने मामला उठाया कि हाईकोर्ट ने इतना समय क्यों लगाया. मैंने सरकारी वकील से विस्तार से बात की. हाईकोर्ट ने इस मामले में वही किया जो आम तौर पर मामलों में करता है. उन्होंने कहा कि तीन अगस्त को हाईकोर्ट के पास 168 केस लगे थे.
तुषार मेहता ने कहा कि इस मामले से एक हफ्ते पहले 124 मामले थे. इस आदेश की तारीख को 168 मामले थे. गुजरात हाईकोर्ट के CJ ने ऑटो लिस्ट पद्धति शुरू की है, जहां जमानत आवेदनों में कुछ दस्तावेज आदि दायर किए जाते हैं. जेल में बंद व्यक्ति को पता नहीं होता है इसलिए ऑटो सूची मदद करती है.
तुषार मेहता ने ऐसे उदाहरण दिए जब हाईकोर्ट ने सितंबर से लेकर अक्टूबर तक की तारीख दी. तुषार ने कहा, तीस्ता ने 2002 से लेकर अभी तक राज्य सरकार से लेकर न्याय पालिका समेत सभी संस्थानों की छवि धूमिल की है. हमें केस से जुड़ी बातों पर ही ध्यान देना चाहिए.
CJI ने कहा कि, आपने जो दिया उसमें मुझे एक भी महिला से जुड़ा मामला नहीं मिला. तुषार ने कहा, तीस्ता के लिए मेरे पास कम से कम 28 मामलों की सूची है जहां इसी जज ने दो दिनों के भीतर जमानत दे दी. याचिकाकर्ता ने पूरे राज्य को राज्य के हर गणमान्य व्यक्ति को बदनाम किया है. उसके लिए कोई भी भरोसेमंद नहीं है. बदनामी अंतहीन रूप से चली आ रही है. अब वो उस जज पर भी बोल रही है.
अधिक महत्वपूर्ण जानकारियों / खबरों के लिये यहाँ >>क्लिक<< करें
CJI ने कहा कि इस समय इस अदालत के समक्ष खुद को तथ्यों तक सीमित रखें. तुषार मेहता ने कहा, मुझे यह कहने का निर्देश है कि जज ने 30-40 मामलों का निपटारा किया है. यही सिस्टम है, अपवाद न बनाएं. अदालत का सवाल यह था कि अदालती फैसले के अलावा एफआईआर में और कुछ नहीं है. दोनों प्रदर्शित करते हैं कि यह सच नहीं है. कुछ मकसद था, कुछ साजिश. हमारे पास दिखाने के लिए कुछ सामग्री है. एसआईटी की एक रिपोर्ट में, एसआईटी ने बताया कि 21 मामलों में वे कहते हैं कि हम जांच करना चाहते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के सामने गवाह के बयान रखने पर गुजरात सरकार पर सवाल उठाया और कहा कि ये बयान सीलकवर में होते हैं. ये मजिस्ट्रेट के पास होने चाहिए. आपको ये बयान कैसे मिले. ये मजिस्ट्रेट कोर्ट की कस्टडी में होने चाहिए. ये कोर्ट से कोर्ट आने चाहिए.
CJI ने कहा कि, आपको तीस्ता से हिरासत में पूछताछ में क्या मिला? तुषार मेहता ने कहा, वो इंटलीजेंट हैं शायद कुछ बताया नहीं होगा. CJI ने कहा, कितने दिन की पुलिस हिरासत थी. तुषार ने कहा, सात दिन की. वो काफी चतुर महिला है. उसने किसी सवाल का सीधा जवाब नहीं दिया. कोर्ट ने पूछा- तो उसने क्या जवाब दिया? इस पर एसजी ने कहा- उसने कोई सहयोग नहीं किया. अगर सुप्रीम कोर्ट दखल देता है तो ये गलत मिसाल होगी, हाईकोर्ट को तय करने दें.
‘लोकल न्यूज’ प्लेटफॉर्म के माध्यम से ‘नागरिक पत्रकारिता’ का हिस्सा बनने के लिये यहाँ >>क्लिक<< करें
CJI ने कहा कि, अभी जो गवाह सामने आए हैं, उनसे पहले पूछताछ हो चुकी है. जिस क्षण एक आदमी को कठघरे में खड़ा किया जाता है और ट्रायल में शपथ पर गवाही दी जाती है. एसआईटी ने शपथ पर सवाल नहीं किया है. उस समय क्या कोई आरोप था कि इस महिला ने गवाहों पर दबाव डाला? एसजी ने कहा- हम अभी भी जांच कर रहे हैं. कोई शिकायत नहीं थी.
तीस्ता सीतलवाड की ओर से कपिल सिब्बल ने कहा कि, 124 लोगों को उम्रकैद हुई है. ये कैसे कह सकते हैं कि गुजरात में कुछ नहीं हुआ. ये सब एक उद्देश्य के लिए है. ये चाहते हैं कि तीस्ता ताउम्र जेल से बाहर ना आए. सिब्बल ने कहा कि, 20 साल से सरकार क्या करती रही. ये हलफनामे 2002-2003 के हैं. तो ये जालसाजी कैसे हो गए? ये हलफनामे इस केस में दाखिल नहीं किए गए. ये पहले के केसों में फाइल किए गए थे.