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नागालैंड में मज़दूरों की हत्या का मुद्दा गरमाया, सुरक्षा बलों के विशेष अधिकारों को समाप्त करने की उठाई जा रही है मांग

ग़ैर सरकारी संस्था कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव ने नगालैंड सरकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से राज्य मानवाधिकार निकाय स्थापित करने की मांग की है।

सीएचआरआई एक ग़ैर लाभकारी अंतर्राष्ट्रीय ग़ैर सरकारी संगठन है जो मुख्य रूप से राष्ट्रमंडल देशों में रहने वालों के अधिकारों के लिए काम करता है।

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सीएचआरआई ने नगालैंड में सुरक्षा बलों के हाथों 14 नागरिकों की मौत के संदर्भ में ये मांग उठाई है। इस बारे में क़ानून बनने के 28 साल बाद भी नगालैंड राज्य में मानवाधिकार आयोग का गठन नहीं हुआ है।

संगठन ने राज्य में आम नागरिकों की मौत को लेकर शीर्ष मानवाधिकार निकाय द्वारा अधिकारियों को नोटिस और इस संबंध में रिपोर्ट मंगाने की कवायद का स्वागत किया है लेकिन इसके साथ ही उसने यह भी याद दिलाया कि नगालैंड राज्य में अभी तक अपना मानवाधिकार आयोग नहीं है।

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सीएचआरआई ने अपने प्रेस रिलीज में हैरानी जताते हुए कहा कि यह स्थिति तब है जब ‘सशस्त्र बल (विशेष अधिकार अधिनियम), 1958 यानी अफ़स्पा नगालैंड राज्य के गठन से पांच साल पहले असम के नगा हिल्स ज़िले में लागू किया गया था।

मालूम हो कि नगालैंड में हालिया हत्याओं के बाद से राजनेताओं, सरकार प्रमुखों, विचारकों और कार्यकर्ताओं ने एक सुर में अफ़स्पा को हटाने की मांग उठाई है। इन्होंने कहा है कि यह कानून सशस्त्र बलों को बेलगाम शक्तियां प्रदान करता है और यह मोन गांव में फायरिंग जैसी घटनाओं के लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार है।

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पिछले छह दिसंबर को एनएचआरसी ने मीडिया रिपोर्टों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए नागरिकों की हत्या को लेकर केंद्र और नगालैंड सरकारों को नोटिस जारी किया था। 

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