सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 29 सप्ताह से अधिक समय से अनचाहे गर्भ से पीड़ित 20 वर्षीय बीटेक छात्रा को प्रसव के बाद बच्चे को गोद देने की अनुमति दे दी। बच्चे को पालने में असमर्थता को देखते हुए शीर्ष अदालत ने इसकी इजाजत दे दी। भारत के मुख्य न्यायाधीश(सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने नोट किया कि याचिकाकर्ता (छात्रा) के वकील, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी और डॉ अमित मिश्रा ने छात्रा को बच्चे को जन्म देने के लिए राजी किया लेकिन वह बच्चे को रखना नहीं चाहती है।
शीर्ष अदालत ने कहा है कि गर्भावस्था के अंतिम चरण को देखते हुए यह मां और भ्रूण के सर्वोत्तम हित में माना गया है कि बच्चे को प्रसव के बाद किसी और को गोद दिया जा सकता है। याचिकाकर्ता द्वारा किसी और को गोद देने का अनुरोध किया गया है क्योंकि वह बच्चे की देखभाल करने की स्थिति में नहीं है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि एक दंपति केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत बाल दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण की सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद बच्चे को गोद लेने और उसकी अच्छी देखभाल करने के लिए तैयार है।
वहीं भाटी ने कहा कि उन्होंने याचिकाकर्ता की बहन के साथ भी बातचीत की है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या वह बच्चे को गोद लेने के लिए तैयार है। हालांकि बहन ने कई कारणों से ऐसा करने में असमर्थता व्यक्त की। वहीं मिश्रा ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता मानसिक दबाव में है। उन्होंने कहा, ‘वह टूट गई है। उसने छात्रावास छोड़ दिया है। उसका जीवन दांव पर है।’
चैंबर के अंदर वकीलों के साथ बातचीत करने के बाद पीठ ने यह आदेश पारित किया। पीठ ने एम्स के निदेशक से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया कि बिना किसी शुल्क का भुगतान किए सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं ताकि सुरक्षित वातावरण में प्रसव हो सके।
पीठ ने कहा, ‘याचिकाकर्ता की गोपनीयता बनाए रखी जानी चाहिए और यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाए जाएंगे कि एम्स में भर्ती होने के दौरान याचिकाकर्ता की पहचान प्रकट नहीं हो।’
संविधान के अनुच्छेद- 142 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग करते हुए शीर्ष अदालत ने भावी माता-पिता द्वारा बच्चे को गोद लेने की अनुमति दी। पीठ ने कहा कि हम असाधारण स्थिति को देखते हुए संविधान के अनुच्छेद- 142 के तहत मिले अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल कर रहे हैं। असाधारण स्थिति अदालत के समक्ष सामने आई है, जिसमें संकट में एक युवती शामिल है,जो गर्भावस्था के अंतिम दिनों में आई है।
मार्च में निर्धारित तिथि से पहले बच्चे को जन्म देने की याचिकाकर्ता की इच्छा के संबंध में पीठ ने कहा, ‘हम अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) से अनुरोध करेंगे कि वह मां और भ्रूण की सुरक्षा और स्वास्थ्य के हित में सभी आवश्यक सावधानी बरतें ताकि विशेषज्ञ चिकित्सा सलाह को ध्यान में रखते हुए प्रसव के लिए उपयुक्त तिथि तय की जा सके।’