भारत को ज़रूरत है दोहरे टीकाकरण की, पाबंदियो की वजह से असंगठित क्षेत्र सबसे ज़्यादा प्रभावित है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आईएमएफ़ के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़, भारत का 90.7 फ़ीसदी श्रमबल असंगठित क्षेत्र में काम करता है, लिहाज़ा इस क्षेत्र के प्रभावित होने से बड़ी तादाद में लोगों के बेरोज़गार होने का ख़तरा पैदा हो गया है।
महामारी की पहली लहर से बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था अभी पटरी पर लौटना शुरू भी नहीं हुयी थी कि दूसरी लहर क़हर बरपाने लगी। इस बार की लहर कहीं ज़्यादा व्यापक और तेज़ है। संक्रमण से निपटने के लिए सरकारों को फ़िलहाल पूरी तरह तालाबंदी जैसी कड़ी पाबंदियों के अलावा कोई चारा नज़र आ भी नहीं रहा। इसलिए ज़्यादातर राज्यों ने फिर से कड़े प्रतिबंध और आंशिक पूर्णबंदी जैसे उपायों का सहारा लेना शुरू कर दिया है।
कहने को तो फ़िललाह कारोबार और औद्योगिक गतिविधियों को इस सख़्ती से अलग रखा गया है, लेकिन जब बड़े पैमाने पर लोगों की आवाजाही पर ही रोक लग जाएगी तो अर्थव्यवस्था इससे कैसे अछूती रह पाएगी।
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भारत को ज़रूरत है दोहरे टीकाकरण की
दो महीने से ज़्यादा तालाबंदी के कारण वित्त वर्ष 2020-21 में भारत की अर्थव्यवस्था रसातल में चली गयी। महामारी की दूसरी लहर को क़ाबू करने के लिए राष्ट्रव्यापी तालाबंदी तो लागू नहीं है, लेकिन अलग अलग राज्यों में लागू सख़्त पाबंदियों और संक्रमण के डर के कारण जो माहौल बन गया है, उससे आर्थिक गतिविधियों के दरवाज़े फिर बंद होने लगे हैं।
उड्डयन, ऑटोमोबाइन, पर्यटन, मॉल, स्पा, होटल, रेहड़ी-पटरी जैसे छोटे-बड़े कारोबार एक बार फिर से ठप्प होने के कगार पर हैं। घरेलू हवाई यात्रियों की तादाद में लगातार गिरावट आ रही है।
महामारी की दूसरी लहर का वाहन उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। कई कारख़ानों में उत्पादन एक बार फिर ठप पड़ सा गया है। देश में बनने वाले कुल वाहनों का एक-चौथाई हिस्सा अकेले महाराष्ट्र में बनता है, लेकिन वहाँ इन दिनों सख़्त पाबंदियां लगीं हैं और कारख़ाने आम दिनों की तुलना में 50-60 फ़ीसदी क्षमता के साथ संचालित हो रहे हैं जिससे हर दिन 100 से 125 करोड़ रूपए का नुक़सान हो रहा है।
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पाबंदियों के कारण असंगठित क्षेत्र सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र है। आईएमएफ़ के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़, भारत का 90.7 फ़ीसदी श्रमबल असंगठित क्षेत्र में काम करता है, लिहाज़ा इस क्षेत्र के प्रभावित होने से बड़ी तादाद में लोगों के बेरोज़गार होने का ख़तरा पैदा हो गया है। इसी तरह शहरों और महानगरों में ख़रीदारी के बड़े ठिकानों के भी बुरे दिन लौट आए हैं। हर महीने 15000 करोड़ रूपए की कमाई करने वाले इस क्षेत्र की कमाई, स्थानीय पाबंदियों की वजह से आधी से ज़्यादा घट गयी है।
आर्थिक अनिश्चितता के कारण उपभोक्ताओं का भरोसा भी डगमगाया है। उपभोक्ता भावना में गिरावट से मांग घटती हैं और मांग घटने से उत्पादन प्रभावित होता है और बेरोज़गारी बढ़ती है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि अकेले महाराष्ट्र और गुजरात मिल कर देश की जीडीपी में 22-25 फ़ीसदी का योगदान करते हैं। इन दोनों राज्यों में आर्थिक गतिविधियों के बाधित होने से देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले नुक़सान का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
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अर्थव्यवस्था की सेहत मापने का सटीक पैमाना बेरोज़गारी दर होता है। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी सीएमआइई के आंकड़े के मुताबिक़, 23 अप्रैल को देश की बेरोज़गारी की दर 7.74 फ़ीसद हो गयी जो मार्च में 6.52 फ़ीसदी थी।
रेटिंग एजेंसियों और ब्रोकरेज कंपनियों ने विकास दर के अपने अनुमान घटा दिए हैं।
लेकिन कोरोना की दूसरी लहर गुज़रने के बाद, तीसरी तिमाही में मांग बढ़ेगी। जून के बाद टीकाकरण की तेज़ रफ़्तार भी दो अंकों की दर हासिल करने में मददगार होगी। लेकिन दो अंकों की विकास दर के लिए टीकाकारण एक बड़ी शर्त है। अगस्त तक 30 करोड़ और दिसंबर तक 50 करोड़ लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य है। लेकिन टीकाकारण की मौजूदा रफ़्तार निराशाजनक है। 11 अप्रैल तक टीकाकरण की दर महज़ 36 लाख प्रतिदिन थी। जबकि यह टीका लोगों की ज़िंदगियां बचाने के लिए जितना ज़रूरी है, अर्थव्यवस्था बचाने के लिए भी उतना ही ज़रूरी है। (साभारः जनसत्ता