लोकसभा चुनाव के बीच चुनाव आयोग और एक गैर सरकारी संगठन (एडीआर) के बीच रार ठनी हुई है। इस बीच चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा पांच चरणों के आंकड़े अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड कर दिए गए हैं। उधर सुप्रीम कोर्ट ने फॉर्म 17 सी (दर्ज किए गए वोटों का खाता) को अपलोड करने की याचिका पर कोई भी निर्देश देने से इनकार किया है। अदालत ने कहा है कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा कि चुनाव को बाधित करने की कोशिश नहीं की जा सकती।
चुनाव आयोग (ईसीआई) ने शीर्ष अदालत के इस फैसले का स्वागत किया है। ईसीआई ने कहा है कि वोटिंग के दिन मतदान और मतदान प्रतिशत के आंकड़ों से कोई भी छेड़खानी नहीं कर सकता। चुनाव आयोग ने इस बात पर भी जोर दिया कि हर बार झूठी कहानियां गढ़कर चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश की जाती है। आयोग ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मतदान डेटा को जारी करने में कोई देरी नहीं हुई है।
‘वोटर टर्नआउट एप के रूप में पहले से मौजूद हैं आंकड़े’
ईसीआई ने कहा कि प्रत्येक संसदीय क्षेत्र से जुड़े आंकड़े पहले से ही वोटर टर्नआउट एप के रूप में लोगों के पास मौजूद थे। इससे पहले शीर्ष अदालत में एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने एक याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि सभी मतदान केंद्रों की जानकारी मतदान के तुरंत बाद अपलोड की जानी चाहिए। एडीआर ने यह भी मांग की है कि मतदान केंद्रों के फॉर्म 17 सी (दर्ज किए गए वोटों का खाता) की प्रतियां मतदान के तुरंत बाद अपलोड की जाएं। इसके बाद चुनाव आयोग ने अदालत में हलफनामा दायर किया था। हलफनामे में बताया गया कि 48 घंटे के भीतर अपनी वेबसाइट पर मतदान डेटा अपलोड करने से पूरे चुनावी क्षेत्र में गड़बड़ी हो सकती है क्योंकि छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है। चुनाव आयोग ने हलफनामे में यह भी बताया कि फॉर्म 17 सी को सार्वजनिक रूप से अपलोड नहीं किया जा सकता क्योंकि वैधानिक ढांचे में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
चुनाव आयोग ने यह दलील भी दी कि कुछ लोगों द्वारा हर बार चुनाव के समय के संदेह का माहौल बनाकर आधारहीन और झूठे आरोप लगाए जाते हैं। ऐसा इसलिए, ताकि चुनाव आयोग को बदनाम किया जा सके। इसके बाद न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को राहत देने से इनकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता चुनाव को बाधित नहीं कर सकते।