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Thursday, November 21, 2024

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सीजेआई (सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश) से नारीवादी व महिला समूहों ने मांगा इस्तीफ़ा, रेप के आरोपी से शादी के बयान पर मचा है हंगामा

ज्ञात रहे – विगत दिवस पूर्व में सीजेआई ने कहा था सरकार से भिन्न अभिव्यक्ति ‘राजद्रोह’ नहीं !

नई दिल्ली – सीजेआई शरद अरविंद बोबडे को एक ओपन लेटर लिख कर चार हज़ार से अधिक महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, प्रगतिशील समूह और नागरिकों ने सुप्रीम कोर्ट में उनके द्वारा ‘नाबालिग़ से बलात्कार के आरोपी युवक से पीड़िता से विवाह करने‘ की बात पूछने और मैरिटल रेप को सही ठहराने को लेकर उनसे पद छोड़ने की मांग की है। (ओपेन लेेेटर पढने के लिये यहाँ >>क्लिक<< करेें )

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पहली मार्च को एक नाबालिग़ से बलात्कार के आरोपी महाराष्ट्र के सरकारी कर्मचारी मोहित सुभाष चव्हाण की ज़मानत की अपील सुनते हुए सीजेआई बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने उससे पूछा था कि क्या तुम उस लड़की से शादी करना चाहते हो, अगर तुम शादी करने को इच्छुक हो तो हम इस पर विचार कर सकते हैं अन्यथा तुम्हारी नौकरी जाएगी और तुम्हें जेल जाना होगा तुमने उसे फुसलाया और बलात्कार किया।

साथ ही पीठ ने जोड़ा था कि हम शादी के लिए दबाव नहीं डाल रहे, हमें बताओ तुम क्या चाहते हो, वरना तुम्हें लगेगा कि हम तुम पर शादी के लिए दबाव डाल रहे हैं।

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इस बयान का जो यह दर्शाता है कि अगर किसी नाबालिग़ से बलात्कार के बाद बलात्कारी उससे शादी कर लेता है, तो यह ठीक है, कड़ा विरोध हो रहा है। कार्यकर्ताओं ने अपने पत्र में लिखा है कि हम भीतर से इस बात के लिए आहत महसूस कर रहे हैं कि हम औरतों को आज हमारे मुख्य न्यायाधीश को समझाना पड़ रहा है कि आकर्षण, बलात्कार और शादी के बीच में अंतर होता है। वह मुख्य न्यायाधीश जिन पर भारत के संविधान की व्याख्या कर के लोगों न्याय दिलाने की ताक़त और ज़िम्मेदारी है।

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पत्र पर दस्तख़त करने वाले लोगों ने यह भी कहा कि बहुत हो चुका, आपके शब्द न्यायालय की गरिमा और अधिकार पर लांछन लगा रहे हैं, वहीं मुख्य न्यायाधीश के रूप में आपकी उपस्थिति देश की हर महिला के लिए एक ख़तरा है, इससे युवा लड़कियों को यह संदेश मिलता है कि उनकी गरिमा और आत्मनिर्भरता का कोई मूल्य है, मुख्य न्यायालय की ऊंचाइयों से बाकी न्यायालयों और तमाम न्याय पालिकाओं को यह संदेश जाता है कि इस देश में न्याय महिलाओं का संवैधानिक अधिकार नहीं है. इससे आप उस चुप्पी को बढ़ावा दे रहे हैं जिसको तोड़ने के लिए महिलाओं और लड़कियों ने कई दशकों तक संघर्ष किया है।

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