सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) में अनुभवी वकीलों को न्यायिक सदस्य के रूप में नियुक्त करने का निर्देश देने की मांग करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करने से मंगलवार को इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने गुरुग्राम निवासी ईशान गिल की याचिका पर संज्ञान लिया और कहा कि वह ऐसा आदेश पारित नहीं कर सकती।
पीठ ने कहा, ”आपकी याचिका गलत है। हम यह नहीं कह सकते कि केवल अनुभवी अधिवक्ताओं को नियुक्त करें। हम सभी इस बात पर सहमत हैं। इसलिए याचिका को खारिज किया जाता है।” सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम, 2007 को संसद की ओर से सेना अधिनियम, नौसेना अधिनियम और वायु सेना अधिनियम के तहत कमीशन, नियुक्ति, नामांकन और सेवा की शर्तों के संबंध में विवादों और शिकायतों पर निर्णय लेने की शक्ति के साथ निकायों की स्थापना के लिए पारित किया गया था।
एएफटी तीनों बलों को संचालित करने वाले तीन कानूनों के तहत कोर्ट-मार्शल के आदेशों, निष्कर्षों या सजा से उत्पन्न अपीलों की सुनवाई भी करता है। नई दिल्ली में प्रधान पीठ के अलावा, एएफटी की चंडीगढ़, लखनऊ, कोलकाता, गुवाहाटी, चेन्नई, कोच्चि, मुंबई, जबलपुर, श्रीनगर और जयपुर में क्षेत्रीय बेंच हैं। उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों को एएफटी के न्यायिक सदस्यों के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त सदस्य जिन्होंने तीन साल या उससे अधिक की अवधि के लिए मेजर जनरल/समकक्ष या उससे ऊपर का पद धारण किया है, उन्हें एएफटी के प्रशासनिक सदस्यों के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
सेवा से हटाई गई ट्रांसजेंडर शिक्षिका सुप्रीम कोर्ट पहुंची
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर शिक्षिका की उस याचिका पर सुनवाई के लिए हामी भर दी, जिनकी सेवा गुजरात और उत्तर प्रदेश के अगल-अलग निजी स्कूलों ने लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद समाप्त कर दी गई थी। याचिकाकर्ता ने अपने मौलिक अधिकारों को बहान करने की मांग की है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी परदीवला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने ट्रांसजेंडर महिला की याचिका पर केंद्र, गुजरात और उत्तर प्रदेश सरकारों को नोटिस जारी करते हुए कहा कि इस मामले में कोर्ट देखेगी कि क्या किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में गुजरात के जामनगर स्थित स्कूल के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के खीरी स्थित एक अन्य निजी स्कूल के अध्यक्ष से भी जवाब मांगा है। पीठ ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि उसकी लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद उत्तर प्रदेश और गुजरात के स्कूलों में उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। याचिकाकर्ता का कहना है कि वह दो अलग-अलग हाईकोर्ट में शिकायत नहीं कर सकती।’’
कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के लिए चार हफ्ते बाद की तारीख मुकर्रर की है। ट्रांसजेंडर महिला की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि उत्तर प्रदेश के एक स्कूल की ओर से उनकी मुवक्किल को नियुक्ति पत्र दिया गया था और हटाए जाने से पहले उन्होंने छह दिन तक सेवा भी दी थी। वकील ने कहा कि गुजरात के स्कूल की ओर से भी नियुक्ति पत्र दिया गया, लेकिन मुवक्किल की लैंगिक पहचान उजागर होने के बाद उन्हें कार्य शुरू ही नहीं करने दिया गया।