कुतुब मीनार विवाद मामले में साकेत कोर्ट ने फैसला 9 जून तक सुरक्षित रख. वहीं सुनवाई के दौरान कुतुब मीनार में हिंदू पक्ष द्वारा पूजा की मांग के लिए दायर याचिका पर एएसआई ने साकेत कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया. एएसआई ने अपने जवाब में कहा है कि कुतुब मीनार की पहचान बदली नहीं जा सकती.
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ASI ने अपने हलफनामें में कहा कि कुतुब मीनार एक स्मारक है और यहां पूजा-पाठ की अनुमति नहीं दी जा सकती है. ASI ने अपने जवाब में कहा कि हिंदू पक्ष की याचिकाएं कानूनी तौर पर वैध नहीं है. साथ ही पुराने मंदिर को तोड़कर कुतुब मीनार परिसर बनाना ऐतिहासिक तथ्य का मामला है. कुतुब मीनार में किसी को भी पूजा का अधिकार नहीं है.
उन्होंने बताया कि जब से कुतुब मीनार को संरक्षण में लिया गया, यहां कोई पूजा नहीं हुई. ऐसे में यहां पूजा की अनुमति नहीं दी जा सकती. इस पर हिंदू पक्ष ने अयोध्या केस का हवाला दिया.
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दरअसल दिल्ली की साकेत कोर्ट में कुतुब मीनार परिसर के अंदर हिंदू और जैन देवी-देवताओं की बहाली और पूजा के अधिकार की मांग को लेकर याचिका दाखिल की गई थी. याचिका में दावा किया गया है कि कुतुब मीनार परिसर में हिंदू देवी देवताओं की कई मूर्तियां मौजूद हैं. जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले में ASI को कोर्ट में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था. जिसके बाद एएसआई ने कोर्ट में अपना हलफनामा दाखिल किया. इसमें एएसआई से साफ तौर पर हिंदू पक्ष की कुतुब मीनार परिसर में पूजा की मांग का विरोध करते हुए कहा कि यह एक स्मारक हौ और यहां किसी को भी पूजा-पाठ की इजाजत नहीं दी जा सकती.
कुतुब मीनार पर सुनवाई के दौरान जज ने हिंदू पक्ष से सवाल किया कि क्या आप स्मारक को पूजा-पाठ की जगह बनाना चाहते हैं? हिंदू पक्ष की तरफ से वकील हरि शंकर जैन और रंजना अग्निहोत्री ने इस मामले में अयोध्या केस का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी माना था कि देवी-देवता हमेशा मौजूद रहते हैं. वकील ने कहा कि जो जमीन देवता की होती है, वह हमेशा उनकी रहती है. जबतक कि उनका विसर्जन पूरे विधि विधान से ना कर दिया जाए.
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साकेत कोर्ट में सुनवाई के दौरान जज ने आगे कहा कि अगर देवता 800 सालों तक बिना पूजा के मौजूद हैं तो उनको आगे भी ऐसे ही रहने दिया जाए. कोर्ट ने कहा कि केस आपको वहां पूजा का अधिकार है या नहीं इसका है. हिंदू पक्ष की मुर्तियों की दलील पर कोर्ट ने कहा कि अगर वहां कुछ अवशेष हैं तो भी आदेश उनको संरक्षित करने का था. वहीं वकील हरिशंकर जैन ने कहा कि इस जगह को विवादित नहीं कह सकते क्योंकि पिछले 800 सालों से यहां नमाज भी नहीं हुई है.