तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने शुक्रवार को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे नलिनी श्रीहरन और आरपी रविचंद्रन सहित छह दोषियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया। स्टालिन ने कहा कि यह “मजबूत कानूनी लड़ाई और मानवता की जीत” है। उन्होंने कहा कि यह “लोकतांत्रिक सिद्धांत की जीत” है। बता दें कि मुख्यमंत्री स्टालिन की डीएमके पार्टी और कांग्रेस तमिलनाडु में गठबंधन में है। दोनों पार्टियों ने पिछला विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ा था। हालांकि स्टालिन हमेशा से दोषियों की रिहाई का समर्थन करते आ रहे हैं।
स्टालिन ने शुक्रवार को ट्वीट किया, “पेरारिवलन के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने नलिनी सहित छह लोगों को रिहा किया है। यह हमारी मजबूत कानूनी लड़ाई और मानवता की जीत है! यह लोकतांत्रिक सिद्धांत की जीत है।” साथ ही उन्होंने राज्यपाल पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार के फैसलों को नियुक्त पदों पर बैठे लोगों द्वारा नहीं टाला जाना चाहिए। तमिलनाडु सरकार ने पहले ही दोषियों को सजा में छूट देने की सिफारिश की थी।
तमिलनाडु सरकार ने नलिनी और रविचंद्रन की समय से पहले रिहाई का समर्थन करते हुए कहा था कि दोषियों की उम्रकैद की सजा माफ करने के लिए 2018 की उसकी सलाह राज्यपाल पर बाध्यकारी है। दो अलग-अलग हलफनामों में, राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि नौ सितंबर, 2018 को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में उसने मामले में सात दोषियों की दया याचिकाओं पर विचार किया था और राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद-161 के तहत प्रदत्त शक्ति के तहत उनकी उम्रकैद की सजा को माफ करने के लिए सिफारिश करने का संकल्प लिया था। नलिनी और रविचंद्रन ने समय से पहले रिहाई की मांग को लेकर शीर्ष अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था।
इससे पहले दिन में, शीर्ष अदालत ने राजीव गांधी हत्याकांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एस नलिनी, जयकुमार, आरपी रविचंद्रन, रॉबर्ट पियास, सुथेंद्रराजा और श्रीहरन को रिहा कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने गौर किया कि जेल में रहने के दौरान दोषियों का आचरण संतोषजनक था और सभी ने विभिन्न विषयों के अध्ययन किए हैं।
शीर्ष अदालत ने यह भी नोट किया कि तमिलनाडु कैबिनेट ने 9 सितंबर, 2018 को उनकी रिहाई की सिफारिश की थी। न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायाधीश बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा कि मामले के दोषियों में से एक ए. जी. पेरारिवलन के मामले में शीर्ष अदालत का पहले दिया गया फैसला इनके मामले में भी लागू होता है।
संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने 18 मई को पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया था, जिसने जेल में 30 साल से अधिक की सज़ा पूरी कर ली थी। अनुच्छेद-142 के तहत, शीर्ष अदालत ‘‘पूर्ण न्याय’’ प्रदान करने के लिए आवश्यक कोई भी फैसला या आदेश जारी कर सकती है।