इस्राइल और हमास के बीच जारी जंग बढ़ती ही जा रही है। इस युद्ध के बाद से दुनिया दो गुटों में बंटी दिख रही है। हालांकि कई देशों ने शांति की भी अपील की है। इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष सत्र में गाजा में मानवीय आधार पर संघर्षविराम के लिए पेश एक प्रस्ताव को भारी बहुमत से अपनाया गया। हालांकि, भारत, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी समेत 45 देशों ने मतदान से खुद को अलग रखा। इस प्रस्ताव से खुद को अलग रखने के रुख पर देश में कई नेताओं और संगठनों ने हैरानी जताई है साथ ही आलोचना भी की है। इसी क्रम में वाम संगठनों सीपीआई (एम) ) और सीपीआई ने कहा कि भारत का यह रुख चौंकाने वाला है।
सीपीआई (एम) ) और सीपीआई ने एक संयुक्त बयान में कहा कि गाजा में संघर्ष विराम के संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर मतदान से भारत का दूर रहना चौंकाने वाला है। यह दिखाता है कि भारत अपनी विदेश नीति को अमेरिकी साम्राज्यवाद के अधीनस्थ सहयोगी के रूप में आकार दे रहा है। इस दौरान सीपीआई (एम) ने यह भी कहा कि वह फलस्तीन के साथ एकजुटता दिखाने के लिए रविवार को अपने एकेजी भवन कार्यालय पर विरोध प्रदर्शन करेगी।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई महासचिव डी राजा ने यह बयान जारी किया। उन्होंने ‘गाजा में इस नरसंहार आक्रामकता को रोकें’ शीर्षक वाले संयुक्त बयान में कहा कि भारत का कदम फलस्तीनी मुद्दे पर उसके दीर्घकालिक समर्थन को नकारता है।
भारतीय विदेश नीति को लेकर मोदी सरकार पर लगाए आरोप
उन्होंने कहा कि एक प्रस्ताव पर भारत का अनुपस्थित रहना, जिसे भारी बहुमत से अपनाया गया। यह दिखाता है कि भारतीय विदेश नीति किस हद तक अमेरिकी साम्राज्यवाद के अधीनस्थ सहयोगी होने और अमेरिका-इजरायल-भारत सांठगांठ को मजबूत करने के लिए मोदी सरकार के कामों को आकार दे रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रस्ताव को अपनाया, इस्राइल ने गाजा पट्टी में हवाई और जमीनी हमले और तेज कर दिए। दोनों संगठनों ने संघर्षविराम का आह्वान करते हुए कहा कि इस्राइल ने गाजा में सभी संचार साधन बंद कर दिए हैं।
फलस्तीन मुद्दे पर मोदी सरकार के दृष्टिकोण में पूरी तरह से भ्रम- शरद पवार
वाम संगठनों के अलावा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने भी इस मुद्दे पर केंद्र की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि इस्राइल-हमास युद्ध के बीच फलस्तीन के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार के दृष्टिकोण में पूरी तरह से भ्रम है। उन्होंने कहा कि आज, भारत सरकार की नीति में पूरी तरह से भ्रम की स्थिति है। मैंने फलस्तीन और गाजा मुद्दे पर भारत सरकार की ओर से ऐसा भ्रम कभी नहीं देखा। पीएम के पहले बयान में पूरी तरह से इस्राइल का समर्थन किया गया था। जब बाहरी दुनिया से प्रतिक्रिया हुई और इसके बाद (भारत के भीतर) विदेश मंत्रालय ने एक अलग रुख अपनाया और फलस्तीन के पक्ष में बात की।
ओवैसी ने की केंद्र की आलोचना
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में उस प्रस्ताव पर अनुपस्थित रहने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की, जिसमें इस्राइल-हमास युद्ध में मानवीय संघर्ष खत्म करने का आह्वान किया गया था।
ओवेसी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, यह चौंकाने वाला है कि नरेंद्र मोदी सरकार मानवीय संघर्ष विराम और नागरिक जीवन की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव से दूर रही। उन्होंने कहा यह एक मानवीय मुद्दा है, न कि राजनीतिक। उन्होंने सवाल किया पहले गाजा को मदद भेजी गई और फिर यूएन में अनुपस्थिति… क्या हुआ विश्वगुरु को?
प्रस्ताव के पक्ष में पड़े थे 120 वोट
गौरतलब है, इस्राइल-हमास युद्ध के बीच गाजा में मानवीय आधार पर संघर्षविराम के लिए जॉर्डन की तरफ से पेश प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित हो गया है। यूएनजीए ने प्रस्ताव को भारी बहुमत से अपनाया है। प्रस्ताव के पक्ष में 120 वोट पड़े थे, जबकि विरोध में 14 वोट पड़े। वहीं 45 देशों ने मतदान से खुद को अलग रखा था। प्रस्ताव में इस्राइल और हमास के बीच मानवीय आधार पर तत्काल संघर्षविराम का आह्वान किया गया है। साथ ही यह बिना किसी रुकावट के गाजा तक मानवीय सहायता पहुंचाने का आह्वान करता है, जिसमें पानी, बिजली और वस्तुओं के वितरण को फिर से शुरू करना शामिल है।
कनाडा ने इस्राइल पर हमास के हमले की निंदा के लिए प्रस्ताव में एक संशोधन पेश किया, जो खारिज हो गया। हालांकि, भारत ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था। चौंकाने वाली बात यह है कि हमास के साथ युद्ध में इस्राइल का मजबूती से समर्थन करने वाले ब्रिटेन और जर्मनी मतदान से अनुपस्थित रहे।
इन देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ किया था मतदान
अमेरिका, इस्राइल, ऑस्ट्रिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, फिजी, ग्वाटेमाला, हंगरी, मार्शल द्वीप, माइक्रोनेशिया, नाउरू, पापुआ न्यू गिनी, पैराग्वे और टोंगा ने जॉर्डन द्वारा पेश प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया था।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में दोनों पक्षों से हिंसा से दूर रहने का आग्रह किया
इस्राइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और नागरिकों की जान की क्षति पर चिंतित भारत ने संयुक्त राष्ट्र में दोनों पक्षों से तनाव कम करने, हिंसा से दूर रहने का आग्रह किया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत की उप स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने शुक्रवार (स्थानीय समय) को संयुक्त राष्ट्र महासभा के आपातकालीन विशेष सत्र में इस्राइल-हमास युद्ध पर अपनी टिप्पणी में कहा कि भारत बिगड़ती सुरक्षा स्थिति और आश्चर्यजनक नुकसान पर गहराई से चिंतित है। जारी संघर्ष में नागरिकों की जान जा रही है। क्षेत्र में शत्रुता बढ़ने से मानवीय संकट और बढ़ेगा। सभी पक्षों के लिए अत्यधिक जिम्मेदारी प्रदर्शित करना आवश्यक है।