संसदीय समिति में विपक्षी सांसदों ने तीन आपराधिक विधेयकों पर असहमति नोट दिया है और उन्हें काफी हद तक मौजूदा कानूनों की कॉपी और पेस्ट बताया है। उन्होंने उनके हिंदी नामों का भी विरोध करते हुए कहा कि यह कदम आपत्तिजनक, असंवैधानिक और गैर-हिंदी भाषी लोगों का अपमान है। उनमें से कुछ ने रिपोर्ट को अंतिम रूप देने से पहले परामर्श की कमी की भी शिकायत की।
गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति ने इस महीने की शुरुआत में भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय सक्षम अधिनियम विधेयकों पर रिपोर्ट स्वीकार की है और उसे राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंपी है।
समिति में कम से कम आठ विपक्षी सदस्यों अधीर रंजन चौधरी, रवनीत सिंह, पी चिदंबरम, डेरेक ओ ब्रायन, काकोली घोष दस्तीदार, दयानिधि मारन, दिग्विजय सिंह और एन आर इलांगो ने विधेयकों के विभिन्न प्रावधानों का विरोध करते हुए अलग-अलग असहमति नोट दाखिल किए हैं।
ये तीनों विधेयक भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। लोकसभा में कांग्रेस के नेता चौधरी ने अपने असहमति नोट में कहा, ‘कानून काफी हद तक समान है। केवल फिर से नंबर दिया गया और फिर से व्यवस्थित किया गया।’
कथित तौर पर हिंदी थोपे जाने के बारे में उन्होंने कहा, ‘ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना उचित नहीं ठहराया जा सकता जिसे शीर्षक के लिए जानबूझकर बाहर रखा गया हो।’ कांग्रेस के दिग्विजय सिंह ने कहा कि समिति के समक्ष पेश होने के लिए प्रतिष्ठित वकीलों और न्यायाधीशों को बुलाने की तत्काल आवश्यकता है। लेकिन ऐसा लगता है कि अध्यक्ष रिपोर्ट सौंपने की जल्दबाजी में थे।
तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि तथ्य यह है कि मौजूदा आपराधिक कानून में से लगभग 93 फीसदी में कोई बदलाव नहीं हुआ है, 22 में से 18 अध्यायों की प्रतिलिपि बनाई गई है और चिपकाई गई है, जिसका अर्थ है कि इन परिवर्तनों को शामिल करने के लिए पहले से मौजूद कानून को आसानी से संशोधित किया जा सकता था।