संसद से पारित तीन नए कानून राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद कानून बन चुके हैं। हालांकि, तीनों कानूनों में खामियों का दावा किया जा रहा है। शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर कर तीनों कानूनों-भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य कानून के तहत कार्रवाई पर रोक लगाने की गुहार लगाई गई है। बता दें कि इन कानूनों के लागू होने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के दौर से चले आ रहे 125 साल से अधिक पुराने कानून- भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.PC) और एविडेंस एक्ट को बदला गया है।
जनहित याचिका में दावा किया गया है कि नए कानूनों में कई ‘खामियां और विसंगतियां’ हैं। आपराधिक कानूनों की व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए तुरंत एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने की मांग भी की गई है। याचिकाकर्ता ने कहा, इन कानूनों से भारत के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
तीनों कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने की मांग करते हुए, वकील विशाल तिवारी ने जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने कहा, संसद से तीनों कानूनों को बिना किसी बहस के पारित किया गया। जब विधेयकों को पारित किया गया उस समय अधिकांश विपक्षी सदस्य निलंबित थे। उन्होंने कहा कि नए आपराधिक कानून कहीं अधिक कठोर हैं।
याचिकाकर्ता के अनुसार, ब्रिटिश कानूनों को औपनिवेशिक और कठोर माना जाता था। अब भारतीय कानून उससे भी अधिक कठोर हैं। पुलिस हिरासत के प्रावधान का उदाहरण देते हुए याचिकाकर्ता ने कहा, 15 दिनों से लेकर 90 दिनों और उससे अधिक अवधि तक हिरासत में रखने की ताकत देने से पुलिस यातना बढ़ने का खतरा है। यह चौंकाने वाला प्रावधान है।
संसद से कब पारित हुए विधेयक
गौरतलब है कि संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में 21 दिसंबर को तीनों विधेयक पारित किए थे। इनके नाम- भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक हैं। अगले दिन यानी 22 दिसंबर को राज्यसभा से भी तीनों विधेयकों को मंजूरी मिल गई। करीब 72 घंटे के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 25 दिसंबर को विधेयकों पर अपनी सहमति दी और यह कानून लागू हो गए। तीनों नए कानून, भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.PC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की जगह लेंगे।