महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सियासत तेज है। इस बीच, राज्य की महायुति सरकार नए सिरे से राज्यपाल के कोटे से विधान परिषद में 12 सदस्यों के नामांकन के लिए योजना बना रही है। जल्द ही शिंदे सरकार इस बारे में नामों की सिफारिश करेगी। हालांकि इससे पहले की एमवीए सरकार ने भी ऐसी कोशिशें की थीं। जब बी एस कोश्यारी राज्य के राज्यपाल थे, लेकिन उन्होंने कभी इसकी अनुमति नहीं दी।
गौरतलब है कि राज्य विधान परिषद में राज्यपाल के कोटे वाले 12 एमएलसी के पद चार साल से अधिक समय से खाली हैं। 6 नवंबर, 2020 को उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार ने तब के राज्यपाल कोश्यारी को 12 उम्मीदवारों की एक सूची भेजी थी, लेकिन उस पर आज तक फैसला नहीं हुआ है। तत्कालीन राज्यपाल कोश्यारी रिटायर भी हो गए और उनके बाद राज्य के राज्यपाल बने रमेश बैस ने भी इस पर कोई फैसला नहीं लिया है।
सूत्रों ने इस बाबत सोमवार को बताया कि एक बार जब कैबिनेट राज्यपाल द्वारा नामित किए जाने वाले 12 नामों के प्रस्ताव को मंजूरी दे देती है, तो शायद अगस्त तक उनके नाम स्वीकार कर लिए जाएंगे। इन 12 लोगों में से एक नाम मुस्लिम समुदाय से भी होगा। इसके अलावा, सूत्रों ने यह भी कहा कि राज्य की शिंदे सरकार विधानपरिषद में अध्यक्ष का पद भी भरना चाह रही है, लेकिन पहले वह सदस्यों के पद पूरे करना चाहती है।
गौरतलब है कि रामराजे नाइक निंबालकर की सेवानिवृत्ति के बाद 7 जुलाई, 2022 से विधान परिषद के अध्यक्ष का पद खाली है। इस समय त्र आयोजित होने पर उपसभापति नीलम गोरे कार्यवाही की अध्यक्षता करती रही हैं। पक्ष ने विधानमंडल के हाल ही में संपन्न मानसून सत्र में परिषद अध्यक्ष नियुक्त करने की मांग की थी।
विपक्ष ने खोला महाराष्ट्र सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक 2024 के खिलाफ मोर्चा
वहीं, एक ओर जहां सरकार इस तरह की कोशिशों में लगी है वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक पर विपक्ष ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। महाराष्ट्र राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वडेट्टीवार ने इसकी तीखी आलोचना की। उन्होंने महाराष्ट्र सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक 2024 को लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने वाला करार दिया। साथ ही कहा कि इसका उद्देश्य शहरी नक्सलियों पर अंकुश लगाने की आड़ में विपक्ष और आम लोगों को दबाना है।
एलओपी ने कहा, ”यह बिल महाराष्ट्र में केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत लाया गया है। इस बिल में प्रावधान यह है कि अगर संस्था का कोई भी सदस्य सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलता है। गिरफ्तार किया जा सकता है और दो साल तक जेल में रखा जा सकता है। ये लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने वाला है।