प्रसिद्ध अर्थशास्त्री की चेतावनी, भारत के जाने-माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा है कि कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर के बीच कामकाजी वर्ग के लिए स्थिति इस बार बदतर लग रही है और इससे भारत में ‘आजीविका संकट’ गहराने की आशंका है।
उन्होंने कहा कि इस महामारी की रोकथाम के लिए राज्यों के स्तर पर लगाया गया ‘लॉकडाउन’ देशव्यापी बंद जैसी ही स्थिति है।
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प्रसिद्ध अर्थशास्त्री की चेतावनी
उनका कहना था कि सरकार का 2024-25 तक देश को 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य कभी भी ‘व्यवहारिक लक्ष्य’ नहीं था।
भारतीय अर्थशास्त्री ने कहा कि इस बार संक्रमण फैलने की आशंका अधिक व्यापक है और इससे आर्थिक गतिविधियों के पटरी पर आने में समय लगेगा।
उन्होंने कहा कि व्यापक स्तर पर टीकाकरण के बावजूद, इस बात की काफी आशंका है कि रुक-रुक कर आने वाला संकट लंबे समय तक बना रहेगा।
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द्रेज ने कहा कि सरकार लंबे समय तक कोविड के समुदाय के बीच फैलने की बात से इनकार करती रही है, जबकि रिकॉर्ड में मामले लाखों में थे।
उन्होंने कहा कि जब आधिकारिक आंकड़ों के एक प्रारंभिक विश्लेषण ने स्वास्थ्य सेवाओं में कमी का खुलासा किया, तो सरकार ने आंकड़े को वापस ले लिया।
अर्थशास्त्री ने कहा कि जनता को यह आश्वस्त करने के लिए कि सब ठीक हैं, भ्रामक आंकड़ों का सहारा लिया गया. संकट से इनकार करना इसे बदतर बनाने का सबसे विश्वस्त तरीका है, हम अब इस आत्मसंतोष की कीमत चुका रहे हैं।
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बेल्जियम में जन्मे भारतीय अर्थशात्री ने कहा कि यदि हम जीडीपी को एक वैध विकास इंडिकेटर के रूप में स्वीकार कर भी लेते हैं, लेकिन इसके लिए स्टैंडर्ड अप्रोच यह होना चाहिए कि हम जीडीपी को प्रति व्यक्ति के आधार पर देखें।
उन्होंने कहा कि चूंकि भारत दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है और यदि हम ‘कुल जीडीपी’ को देखते हैं तो यह भारत की बड़ी आबादी के चलते काफी बड़ी दिखाई देता है, नतीजतन ये समृद्धि और शक्ति का भ्रम पैदा करती है।