केरल सरकार से जुड़े एक मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों द्वारा राजकोषीय कुप्रबंधन एक बड़ा मुद्दा है, जिसको लेकर केंद्र को चिन्तित होना चाहिए क्योंकि ऐसे मुद्दे देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है। साथ ही सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र और केरल सरकार को मतभेदों को दूर करने की सलाह दी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी तब सामने आई जब अदालत केरल सरकार द्वारा दायर एक मुकदमे की सुनवाई कर रहा था। जिसमें भारत सरकार पर उधार लेने की सीमा लगाकर राज्य के वित्त को विनियमित करने के लिए राज्य की शक्तियों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने मुद्दे को सुलझाने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि केंद्र और राज्य के बीच बातचीत केवल लंबित मुकदमे के कारण नहीं रुकनी चाहिए।
केरल सरकार के पास कोई विकल्प ही नहीं- सिब्बल
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा कि सभी वरिष्ठ अधिकारी निर्णय लेने में सक्षम हैं। मामले के समाधान के लिए एक साथ बैठें और इसे हल करें। केरल सरकार ने 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 15 फरवरी को हुई बैठक विवादास्पद मुद्दे को सुलझाने में असफल रही। बुधवार को केरल सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्य के पास इस मुद्दे पर आंदोलन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। सिब्बल ने कहा कि फिलहाल राज्य को राहत की जरूरत है।
मुकदमा वापस लेने के बाद ही विचार किया जा सकता है- कोर्ट
पीठ ने कहा कि सिब्बल ने पिछली सुनवाई में एक नोट दाखिल किया था जिसमें उन्होंने उस समझौते के बारे में संक्षिप्त विवरण दिया था जो 15 फरवरी की बैठक में हुआ था। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एन वेंकटरमण ने भी एक नोट दिया था, जिसे अदालत ने वापस ले लिया। पीठ ने नोट्स को याद करते हुए कहा कि चूंकि केरल ने उधार लेने पर शर्तें लगाने की केंद्र की शक्ति को चुनौती दी है, इसलिए अतिरिक्त उधार लेने के राज्य के अनुरोध पर केवल मुकदमा वापस लेने के बाद ही विचार किया जा सकता है।