उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में देरी पर नाराजगी जताई है। केंद्र सरकार की खिंचाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, कॉलेजियम 21 नामों की अनुशंसा कर चुकी है, लेकिन 21 नामों की नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा कि पसंद के नाम चुनने की उसकी प्रवृत्ति बहुत समस्याएं पैदा कर रही है।
शुक्रवार को न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्र से कहा कि मौजूदा स्थिति के अनुसार, कॉलेजियम की सिफारिश वाले पांच नाम ऐसे हैं, जिन्हें दूसरी बार भेजा गया है। पांच नामों की अनुशंसा पहली बार हुई है। 11 हाईकोर्ट जजों के नाम तबादलों वाले हैं, जो सरकार के पास लंबित हैं।
शीर्ष अदालत ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में, जब सरकार किसी को नियुक्त करती है और दूसरों को नियुक्त नहीं करती है, तो “वरिष्ठता का आधार ही गड़बड़ा जाता है।” न्यायमूर्ति कौल ने कहा, “अपनी पसंद के नाम चुनना (pick and choose) बहुत सारी समस्याएं पैदा करता है।” बता दें कि जस्टिस कौल शीर्ष अदालत की कॉलेजियम के सदस्य भी हैं।
सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से दो सप्ताह का समय देने का अनुरोध किया। सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया चल रही है। बता दें कि अदालत दो याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रही थी। इसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिए कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र सरकार पर जानबूझकर देरी करने का आरोप लगाया गया था।
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया परामर्शात्मक है, लेकिन तबादलों के मामले में जिस व्यक्ति के नाम की सिफारिश की गई है वह पहले से ही एक न्यायाधीश है। कॉलेजियम के पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों के विवेक के आधार पर उससे किसी अन्य अदालत में बेहतर सेवा करने की अपेक्षा की जाती है। ऐसे में यह धारणा नहीं बननी चाहिए कि ‘किसी’ के लिए देरी हो रही है, जबकि कई नामों की सिफारिश के बाद नियुक्ति में कोई देरी नहीं हो रही।
न्यायमूर्ति कौल ने कहा, “मुझे इस बात की सराहना करनी चाहिए कि पिछले एक महीने में नियुक्ति प्रक्रिया में काफी तेजी दिखी है। ये कुछ ऐसा है जो पिछले पांच-छह महीनों में नहीं हुआ।” उन्होंने कहा, “नियुक्ति प्रक्रिया में, जब आप कुछ लोगों को नियुक्त करते हैं और दूसरों को नियुक्त नहीं करते हैं, तो वरिष्ठता का आधार ही गड़बड़ा जाता है।”