योगी सरकार बड़े बड़े होल्डिंग लगाने लेकर अखबारों में विज्ञापन के माध्यम से दिल्ली समेत देश भर में रोजगार मिशन नंबर वन का प्रोपेगैंडा कर उत्तर प्रदेश सरकार का सफल रोजगार माडल तस्वीर पेश करने की कोशिश की जा रही है। प्रदेश में करीब साढ़े चार करोड़ लोगों को रोजगार देने यानी नया रोजगार सृजन का दावा व प्रचार किया जा रहा है, उसमें केंद्र सरकार द्वारा संचालित मनरेगा योजना में डेढ़ करोड़ लोगों को मिला रोजगार शामिल बताया जा रहा है।
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पहली बात तो यह मनरेगा जैसी तमाम सरकारी योजनाएं पहले से ही संचालित हैं। उत्तर प्रदेश में विगत 4.5 सालों में मनरेगा समेत अन्य किसी भी सरकारी योजना में ऐसी कोई भी नयी बात नहीं है जो नोट करने लायक हो। इन सरकारी योजनाओं में मिलने वाली दिहाड़ी मजदूरी जिसकी साल भर गारंटी भी नहीं है योगी सरकार उसे भी रोजगार की श्रेणी में गिना कर अपनी उपलब्धियों का प्रोपेगैंडा कर रही है। जबकि इन सभी सरकारी योजनाओं को मिलाकर साल भर में गरीबों को इतने दिन भी दिहाड़ी मजदूरी नहीं मिलती कि उनका गुजारा हो सके। इसमें सबसे बड़ी योजना मनरेगा है।
इसके विश्लेषण से आप वस्तु स्थिति का सही अंदाजा लगा सकते हैं। 24 मार्च 2020 में लाक डाऊन के बाद गरीबों के सामने भुखमरी की विकट समस्या पैदा हुई, बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूर गांवों में आ गए। जरूरत थी कि सभी गरीबों व जरूरतमंदों को काम दिया जाता। लेकिन मनरेगा जैसी योजना में जिसमें न्यूनतम 100 दिन की गारंटी का जो कानूनी प्रावधान है उसे भी उत्तर प्रदेश सरकार ने लागू नहीं किया।
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जिन डेढ़ करोड़ लोगों को मनरेगा में रोजगार देने के सरकारी प्रचार में पानी की तरह पैसा बहाया जा रहा है इन डेढ़ करोड़ लोगों को मनरेगा औसतन 30 दिन से कम काम मिला है, जिस मजदूर ने साल में एक दिन भी काम किया है वह भी डेढ़ करोड़ के आंकड़ों में शामिल है। इसी तरह के भ्रामक व झूठ पर आधारित आंकड़े इनकी अन्य उपलब्धियों के भी हैं। हद तो यह है कि इन डेढ़ करोड़ लोगों को दी गई दिहाड़ी के एवज में महज 9 हजार करोड़ खर्च किया गया है। संभवतः सरकार कहीं इससे ज्यादा रोजगार मिशन नंबर वन के प्रोपेगैंडा में खर्च कर रही है।
इस तरह स्पष्ट है कि डेढ़ करोड़ लोगों को मनरेगा योजना में रोजगार देने का प्रचार आंकड़ेबाजी के सिवाय कुछ नहीं है। इसी तरह के रोजगार का प्रोपैगेंडा कर योगी सरकार को रोजगार सृजन में अव्वल बताया जा रहा है। योगी सरकार रोजगार व विकास के दावों का जिस तरह सरकारी मशीनरी व संसाधनों का दुरुपयोग कर देश भर प्रचार कर रही है, उसकी असलियत को युवा मंच तथ्यों सहित प्रस्तुत कर पर्दाफाश कर रहा है। दरअसल सच्चाई यह है कि प्रदेश में भी बेकारी की भयावह स्थिति है। यही वजह है कि 5-6 हजार रुपए मानदेय की कैजुअल नौकरियों के लिए एमटेक-बीटेक, एमबीए और पीएचडी डिग्री होल्डर बड़े पैमाने पर आवेदन कर रहे हैं। हाल में ही सीएमआईई की रिपोर्ट आयी है कि जुलाई महीने में 32 लाख सैलरीड क्लास(वेतनभोगी) की नौकरी चली गई। जाहिरा तौर पर कैजुअल जाब कहीं इससे ज्यादा खत्म हुए होंगे।
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इन हालात में ही युवा मंच ने निर्णय लिया है कि प्रदेश में 5 लाख रिक्त पदों के सरकारी विभागों के बैकलॉग को भरने, हर युवा को रोजगार की गारंटी और रोजगार न मिलने तक बेरोजगारी भत्ता देने की मांग को लेकर ईको गार्डेन, लखनऊ में 9 अगस्त से बेमियादी धरना प्रदर्शन किया जायेगा। आप सभी से अपील है कि इस मुहिम में हरसंभव सहयोग करें।
सौजन्य – राजेश सचान