नई दिल्ली: जानें क्यों, संसद के आगामी सत्र में सरकार एक बिजली संशोधन विधेयक पेश करने वाली है, जिसका विरोध हो रहा है. प्रस्तावित संशोधित विधेयक के खिलाफ 10 अगस्त को ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने कार्य बहिष्कार का एलान किया है. इस एक दिवसीय कार्य बहिष्कार में फेडरेशन के कर्मचारी और बिजली इंजीनियर शामिल होंगे.
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फेडरेशन ने सरकार से मांग की है कि संसद के मॉनसून सत्र के लिए सूचीबद्ध विधेयक (listed bill) को जल्दबाजी में नहीं लाया जाना चाहिए. साथ ही अपील की है कि संसद में पेश करने की बजाय विधेयक को चर्चा के लिए ऊर्जा पर स्थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिए.
फेडरेशन ने आरोप लगाया है कि बिजली अधिनियम 2003 ( Electricity Act 2003) ने उत्पादन के निजीकरण (privatisation) की अनुमति दी थी और अब प्रस्तावित विधेयक में बिजली वितरण का निजीकरण किया जा रहा है, जिससे बिजली कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी. 10 अगस्त को कार्य बहिष्कार करने का फैसला मंगलवार को बिजली कर्मचारियों और इंजीनियरों की राष्ट्रीय समन्वय समिति (NCCOEEE) की वर्चुअल बैठक में लिया गया. बैठक की अध्यक्षता एआईपीईएफ के अध्यक्ष शैलेंद्र दुबे ने की. बैठक में 27 जुलाई को केंद्रीय ऊर्जा मंत्री से मिलकर प्रस्ताविक विधेयक के खिलाफ ज्ञापन सौंपने का निर्णय लिया गया है.
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AIPEF के प्रवक्ता वीके गुप्ता ने कहा कि विधेयक के मसौदा को अंतिम रूप देने में उपभोक्ता, बिजली क्षेत्र के कर्मचारी और इंजीनियरों को नजरअंदाज किया गया है. इसके अलावा, केंद्र सरकार की तरफ से हितधारकों से इन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है. गुप्ता ने आरोप लगाया कि केंद्र उपभोक्ता हितों की रक्षा करने की तुलना में निजी बिजली कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए अधिक चिंतित है.
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इससे पहले फेडरेशन के अध्यक्ष शैलेन्द्र दुबे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि विधेयक के तकनीकी पहलुओं पर तकनीकी विशेषज्ञों, बिजली इंजीनियरों और बिजली कर्मियों से कोई विचार-विमर्श किए बिना उपभोक्ताओं और कर्मचारियों को प्रभावित करने वाले बिल को संसद में प्रस्तुत करना उचित नहीं है.