संपादक की कलम से –
भगवान के लिये हुज़ूर हट छोड़ो, मान्यनीय देश आज कोरोना से कराह रहा है, जनता हुज़ूर से सांसें झोली फैला कर भीख मांग रही है, बचालो उनकी जिन्दगियाँ दे दो भीख में उन्हे सांस अन्यथा गणमान्य जनों आपको देश कभी भी मांफ नहीं करेगा !
क्योंकि यदि आज से लगभग 10 माह पूर्व आपने इस अदने के सुझाव पर संज्ञान ले लिया होता तो हुज़ूर आज देश इस तरह कराह नहीं रहा होता !
लेकिन हमारे देश में सत्ता पे बैठे हुक्मरान वो अपने हट के आगे झुकने को ही नहीं तैयार हैं, उन्हे लगता है की अब देश में उनसे ज्यादा कोई बुद्धजीवी ही नहीं, क्योंकि संविधान ने भी उन्हेंने विशेष दर्जा प्रदान किया हुआ है, विधायिका को गढ़ने का !
बस यही उनके भीतर का अहम है कि जो उन्हे आम अदने व्यक्ति के सुझाव को मानने पर डिगा रहा है कि जो बड़े – बड़े विधान तैयार करते हैं वो किसी अदने की सलाह को मानने पर क्यों मजबूर हों, यही है सुझाव को अमल में न लाने की मुख्य वजह ?
भगवान के लिये हुज़ूर हट छोडो
मेरे हुजूर आप ही देश के अन्नदाता हैं और आप ही रहेंगे ! हम आम है आम ही रहेंगे, आपको ऊपर वाले का वास्ता है दम तोड़ती जनता के धैर्य की और परिक्षा मत लें अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब सब कुछ इतिहास बन जायेगा !
दम तोड़ती व्यवस्था को इस सुझाव के ऑक्सीजन की अति आवश्यकता है, अन्यथा देश या देशवासी आपको कभी भी मांफ नहीं करेंगे, जिन्होने आपको चुनकर सत्ता तक पहुंचाया, उनका भी विश्वास आपकी ओर से डिग जायेगा!
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क्या आज आपको इस अदने का सुझाव शूल सा चुभ रहा है क्योंकि इसने ‘प्रवासी मजदूरों’ को उनके गृह जनपद तक पहुंचाने का एक नायाब सुझाव दिया, जिसके चलते आप विदेशों तक से देश के नागरिको को सकुशलता के साथ देश वापस लाने में सफल हुये। कृषि पर कोरोना में लाभ अर्जित कर अपनी पीठ तक थप-थपायी।
तो हुज़ूर ये बताओ जब वो सारे सुझाव जिसका श्रेय आपने और आपके पार्टी के नेताओं ने हरी झंण्डी दिखाकर लिया, तब वो सुझाव बहुत अच्छा था और तत्काल उसे अमल में भी लाया गया।
क्या आपकी नारजगी इस बात पर है कि मैंने इस सुझाव को आम कर दिया या अमल में लाने के वक्त कुछ देरी होने के चलते आपके सलाहकारों को कोसा क्या बस यही गुनाह है? यदि आपको हमसे शिकवे हैं तो आप उसके लिये हमें सजा दें लेकिन देश या देशवासियों ने क्या बिगाड़ा है, कम से कम हमारी सजा उन्हे मत दीजिये !
हुजूर इस सुझाव को जल्द से जल्द अमल में लायें, बेवस लाचार जिन्दगियों को मौंत के मुँह में जाने से बचायें, देश के एक भी नागरिक की जांन यदि बदहाल व्यवस्था के चलते जाती है तो उसके गुनहगार आप और आपका अहम ही होगा ! कोई और नहीं ! यहाँ भले ही हिसाब न देना पडे लेकिन एक न एक दिन आपको भी ऊपर वाले को तो हिसाब देना ही पडेगा!
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देश आज अपने सुप्रीम पॉवर की ओर भी टकटकी लगाये देख रहा है कि सायद हमारे सुप्रीम पॉवर का ही दिल पसीजे और उनकी उखड़ती हुई सांसों को दम तोड़ने से बचा ले, तड़फते, बिलखते परिवारों को ढांढस बंधा सके कि कोई नहीं कम से कम हमारा सुप्रीम पॉवर उनके साथ है।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पूर्व प्रेषित व वर्तमान में प्रेषित पत्र व सुझाव जिसे आमजन पढे कि क्या यदि इसे समय रहते अमल में लाया गया होता तो क्या आज ये दिन देश या जनता को देखने पडते ? विचार अवश्य करें !
हुजूर क्योंकर 10 माह पूर्व इस पर संज्ञान नहीं लिया गया, जिसे आपके समक्ष भी रख गया था ? क्यों कर हमारे देश के स्वास्थ मंत्री जिन्होंने कोरोना को इतने हल्के में लिया ? कहाँ हैं सरकार के वो निकम्में वैज्ञानिक जिन्होंने दावा किया था कोरोना फरवरी में खत्म हो जायेगा ? जिसके सलाह पर हुजूर इतने आश्वस्त थे, और किसी भी तरह का कोई पुख्ता इन्तजामात ही नहीं किये ?
हमारे हुज़ूर तो इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने बिहार चुनाव के दौरान टेस्टिंग के लेवल को ही कम कर दिया ताकि आकड़ों के खेल-खेले जा सके, क्यों ? अब हुज़ूर कहते हैं कि ज्यादा टेस्टिंग से ही कोरोना पर काबू पाया जा सकता है। तो जब टेस्टिंग पर सवाल खड़े किये गये, और कोरोना डाऊन फॉल के समय ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की सलाह दी जा रही थी तो उस पर अमल क्यों नहीं हुआ ?
जब देश कोरोना मामले पर विश्व के दूसरे पायदान पर पहुंच गया था अमेरिका जैसे देश से सबक क्योंकर नहीं लिया गया, जो बेझिझक पूरी तनमयता के साथ रात – दिन एक कर उसने अपने नागरिकों की टेस्टिंग पर जोर दिया, भले ही वो विश्व के पायदान पर अव्वल नंबर पर था, लेकिन इसकी परवाह न करते हुये, अपनी टेस्टिंग को बढ़ाता गया और लगभग 80 % से ज्यादा आबादी पर पूरा किया और इतना ही नहीं वैक्सीनेशन भी इसी तरह से युद्ध स्तर पर जारी है ।
पर गौर करने वाली बात ये है कि हम इस कार्यपथ पर अग्रसर थे कि हमें भारत को कोरोना में विश्व का नंबर – 1 नहीं बनने देना है, बस यही सोंच लेकर हमने टेस्टिंग के आकड़ों के खेल पर जोर दिया, न कि टेस्टिंग पर ! इतना ही नहीं इसे पुख्ता करने के लिये वैज्ञानिकों का एक सरकारी पैनल बनाना उचित समझा तकि लोगों को आश्वस्त किया जा सके।
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यदि हमने अमेरिका से ही सीख ले ली होती क्योंकि उस दौर में अमेरिका से बढ़कर हमारा कोई दूसरा हमदर्द भी नहीं था और ट्रम्प से बड़ा कोई दोस्त भी नहीं था, यदि हुज़ूर अपने मितरों की ही राह अपना लेते तो आज देश के नागरिक कोरोना की भयानक मौंत के कारण पितरों से मिलने के लिये श्मशान में अपने नंबर की बाट नहीं जोह रहे होते !
जबकि अमेरिका की लगभग 33.25 करोड़ की आबादी है, वहीं भारत की लगभग 139 करोड़ की आवादी है मगर अफशोस देश में इतनी भयावहता के बावजूद लगभग 27.44 करोड़ ही टेस्टिंग हो पायी, इसी तरह वैक्सीनेशन की डुग-डुगिया पीटने वाले अभी तक लगभग 13.5 करोड़ को की वैक्सीनेट कर पाये हैं !
अब इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे हुक्मरान कोरोना को लेकर कितने संजीदा हैं, जब देश को चलाने वाले राजनेता सिर्फ सत्ता बस सत्ता की चाहत में व्यस्त रहेंगे तो क्या ऐसे राजनेता देश का बेड़ागर्ग करने में कोई कोर कसर बाकी रखेंगे ? अब तो राम भरोसे हिन्दुस्तान है। हम जय श्रीराम का नारा लगाते-लगाते राम नाम सत्य बोलने पर लाचार, बिवस और मजबूर हैं ? इस पर गौर करने की जरूरत है कि नहीं ? इस पर जनता को ही फैसला करना होगा !
अब जो भी कुछ आस बची है तो वो हमारे न्याय के देवता के हाथों है, अब उन्हे ही विचार करना होगा कि देश बड़ा या कुर्सी ? या सत्ता बडी की जनता ?
- -मानवाधिकार अभिव्यक्ति, आपकी अभिव्यक्ति