सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में अति पिछड़े समुदाय वन्नियार को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में दिए गए 10.5 प्रतिशत आरक्षण को बृहस्पतिवार को रद्द कर दिया.
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जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसने आरक्षण को रद्द कर दिया था. पीठ ने कहा, ‘‘हमारी राय है कि वन्नियाकुल क्षत्रियों के साथ एमबीसी समूहों के बाकी के 115 समुदायों से अलग व्यवहार करने के लिए उन्हें एक समूह में वर्गीकृत करने का कोई ठोस आधार नहीं है और इसलिए 2021 का अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है. अत: हम उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हैं.’’
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बीते महीने 23 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के पर सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. शीर्ष अदालत ने पहले इस मुद्दे को एक बड़ी पीठ को भेजने से इनकार कर दिया था और कहा था कि उसने प्रस्तुत निर्णयों का अध्ययन किया है और उसका विचार है कि इस मुद्दे पर एक बड़ी पीठ द्वारा विचार करने की आवश्यकता नहीं है.
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तमिलनाडु की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने भी दलील दी थी कि सबसे पहले 102वें संशोधन में यह प्रावधान है कि केवल राष्ट्रपति ही ओबीसी सूची में किसी जाति को शामिल या बाहर कर सकते हैं अर्थात यदि वर्गों और जातियों की एसईबीसी के रूप में पहचान हो तो यह शक्ति विशेष रूप से राष्ट्रपति के पास है.