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Thursday, November 21, 2024

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हिंदू एकता की गुहार क्यों लगा रही बीजेपी-आरएसएस, हिंदुओं पर खतरा या चुनावी जीत है निशाना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आजकल लगातार ‘हिंदू एकता’ की बात कर रहा है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले ‘बंटेंगे, तो कटेंगे’ का बयान दिया। इस पर विवाद भी हुआ, लेकिन इसके बाद भी भगवा खेमे ने लगातार इस आवाज को आगे बढ़ाया। योगी आदित्यनाथ के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हिंदू समाज से एकजुट होने की अपील कर दी। भाजपा नेताओं की इस अपील का कारण क्या है? क्या सच में हिंदू समाज के सामने अस्तित्व का कोई संकट है? या यह कांग्रेस के जातिगत जनगणना दांव की काट है? भाजपा की यह कोशिश कितनी सफल हो पाएगी?

यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि भाजपा हमेशा से ही ‘हिंदुत्व और राष्ट्रवाद’ की राजनीति करती रही है। अपने जन्म से ही वह हिंदुओं की एकता का मुद्दा उठाती रही है। इसी राजनीति के बल पर उसने 1984 में दो लोकसभा सीटों से 2019 में 303 सीटों तक का सफर तय किया। सहयोगी दलों के साथ वह केंद्र में लगातार तीन बार सरकार बनाने का कारनामा भी कर चुकी है। लेकिन इसके बाद भी भाजपा नेता खुले तौर पर कभी ‘हिंदुओं एक हो जाओ’, ‘बटेंगे, तो कटेंगे’ जैसे नारे नहीं लगाते थे।

मुस्लिम नेता भी साथ
उनकी आंतरिक रणनीति चाहे जो भी रही हो, खुले तौर पर वे मुसलमानों को भी साथ लेकर आगे चलने की बात किया करते थे। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में कभी सिकंदर बख्त जैसे नेता हुआ करते थे। मुख्तार अब्बास नकवी, शाहनवाज हुसैन, जफर इस्लाम और राष्ट्रीय प्रवक्ता शहजाद पूनावाला जैसे नेता आज भी हर मंच से भाजपा की पुरजोर वकालत करते हैं। पार्टी की हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा पसमांदा मुसलमानों के लिए आवाज उठाना पार्टी की इसी सोच का परिणाम था।

पार्टी का अल्पसंख्यक मोर्चा हर चुनाव में मुस्लिम बहुल इलाकों के बूथों पर अधिक वोट हासिल करने का लक्ष्य निर्धारित करता है। मोदी मित्र बनाकर पिछले लोकसभा में भी मुस्लिम बहुल सीटों पर मुसलमानों के वोट हासिल करने की रणनीति बनाई गई थी। इसका असर कितना हुआ, यह कहना मुश्किल है, लेकिन सीएसडीएस के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस-इंडिया गठबंधन के पक्ष में मुसलमानों के एकजुट होने के बाद भी भाजपा को दो से चार प्रतिशत मुसलमान वोट मिलते हैं।

यदि भाजपा मुसलमानों को साथ लेकर भी चल रही है और उसे मुसलमानों का वोट भी चाहिए तो उसके नेता ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा क्यों लगा रहे हैं? वे किसे हिंदुओं का डर दिखा रहे हैं और उन्हें किसके खिलाफ एकजुट होने की बात कह रहे हैं?

जातियों के गठजोड़ से ही रुका भाजपा का विजय अभियान
दरअसल, सच यह है कि जब-जब विपक्ष ने जातियों की एकता का दांव खेला है, भाजपा का विजयी रथ ‘ठहर’ गया है। 1990 के दशक में यूपी में मुलायम और कांशीराम के जातीय सामाजिक गठबंधन ने भाजपा का विजय रथ रोक दिया तो बिहार में लालू प्रसाद यादव के सामाजिक समीकरणों की राजनीति ने भाजपा के रथ का पहिया जाम कर दिया।

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों को भी देखें तो जिस समय भाजपा ‘400 पार’ का दंभपूर्ण नारा लगा रही थी, उसके विजय रथ को अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने सामाजिक समीकरणों के बल पर ही रोकने में सफलता पाई। भाजपा अप्रत्याशित तरीके से यूपी में 33 सीटों पर सिमट गई, जबकि एक नया इतिहास रचते हुए अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने यूपी में अब तक की सबसे बड़ी सफलता हासिल कर ली।

सही मायने में कहें तो राहुल गांधी के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन और कांग्रेस ने जिस जातीय जनगणना, संविधान पर खतरा और आरक्षण के मुद्दे को आगे बढ़ाया, उससे भाजपा को पूरे देश में नुकसान हुआ। उसके खिलाफ विपक्ष को माहौल बनाने में जबरदस्त सफलता मिली। राजनीतिक विशेषज्ञ तो यहां तक मानते हैं कि यदि विपक्ष सही तरीके से शुरुआत से ही अपना अभियान चला पाया होता तो 2024 लोकसभा चुनाव का परिणाम कुछ और भी हो सकता था।

2029 के चुनाव की तैयारी
भाजपा के शीर्ष नेताओं का स्पष्ट तौर पर मानना है कि कांग्रेस जिस तरह जातीय जनगणना के दांव को आगे बढ़ा रही है और उसके नेता लगातार आरक्षण की सीमा बढ़ाने की बात कर रहे हैं, विपक्ष 2029 को ध्यान में रखते हुए इस तरह की चालें चल रहा है। यानी विपक्ष 2029 में इन्हीं मुद्दों के सहारे मोदी और भाजपा को चित करने की योजना बना रहा है। महाराष्ट्र-झारखंड में भी विपक्ष इन्हीं मुद्दों के सहारे भाजपा को घेरने की योजना बना रहा है।

यदि विपक्ष की यह मुहिम जमीन पकड़ लेती है तो इससे भविष्य में भाजपा की राजनीति को बड़ा खतरा हो सकता है। भाजपा भी जातियों की राजनीति का कड़वा स्वाद चख चुकी है और वह इस मुद्दे की ताकत को समझती है। यही कारण है कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुलकर इस पिच पर आना पड़ा है और अब तक मुसलमानों के एक हाथ में कुरान और एक में कंप्यूटर की बात करने वाले मोदी पहली बार हिंदुओं से एक होने की अपील कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को न केवल हिंदू समाज से एकजुट होने की अपील की, बल्कि कांग्रेस पर यह आरोप भी लगाया कि वह हिंदू समाज को जातियों में बांटकर उसे कमजोर करना चाहती है। मोदी ने यह भी कहा कि कांग्रेस मुसलमानों के जातियों की बात कभी नहीं करती, जबकि हिंदुओं को विभाजित करने के लिए वह लगातार लोगों की जाति पूछती है।

यानी भाजपा हिंदू एकता के जरिए कांग्रेस के जातिगत जनगणना और आरक्षण दांव की काट खोजने की कोशिश कर रही है। इस दांव से वह महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली के विधानसभा चुनावों पर भी निशाना लगा रही है।

हिंदू एकता के मंच बने रामलीला कार्यक्रम
इस समय नवरात्रि चल रहे हैं और देश में जगह-जगह रामलीलाएं आयोजित की जा रही हैं। भाजपा नेता इन रामलीलाओं के मंच पर पहुंचकर हिंदुओं की एकता की बात कर रहे हैं। भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने बुधवार को करावल नगर के एक रामलीला कार्यक्रम में ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ का नारा लगवाया। उन्होंने हिंदू समाज से जातियों का भेद भुलाकर एक हो जाने की अपील की।

कपिल मिश्रा ने अमर उजाला से कहा कि वे किसी के खिलाफ कोई बात नहीं कर रहे हैं। वे समय को देखते हुए केवल हिंदू समाज से एकजुट होकर रहने की अपील कर रहे हैं और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। उन्होंने कहा कि दूसरे धर्म के नेता जबअपने लोगों को एकजुट होने की बात कहते हैं तो उसमें किसी को बुराई नजर नहीं आती तो हिंदुओं की एकता से किसी को परेशानी क्यों है?

परिस्थितियां दे रही भाजपा का साथ
राजनीतिक विश्लेषक विवेक सिंह ने अमर उजाला से कहा कि भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव एक कड़वी सच्चाई है। हमारे संविधान निर्माताओं ने सबको एक बराबर लाने के लिए ही आरक्षण जैसी व्यवस्था की थी। लेकिन इस समय जिस तरह की वैश्विक परिस्थितियां बन रही हैं, कुछ वर्गों के नेता पूरी दुनिया में अपनी कौम को एकजुट होने की बात कह रहे हैं। कुछ आतंकी संगठन भी एक धर्म विशेष के लिए काम करने के नाम पर अपनी हर गलत हरकत को सही ठहरा रहे हैं। चूंकि, आज के सोशल मीडिया के जमाने में ये बातें हर व्यक्ति तक पहुंच रही हैं, समाज में इसको लेकर प्रतिक्रिया भी हो रही है।

विवेक सिंह ने कहा कि इन परिस्थितियों से आम व्यक्ति के मानस पर असर पड़ता है और उनमें डर और असुरक्षा का भाव पैदा होता है, जबकि इसी दौर में जब कोई उनके समुदाय का कोई बड़ा नेता उनसे एकजुट होने की अपील करता है तो इसमें उन्हें सुरक्षा का भाव दिखाई देता है। लेकिन ये परिस्थितियां स्थाई नहीं होतीं। उनके अनुसार, इस तरह की तनावग्रस्त परिस्थितियों के गुजर जाने के बाद लोग सामान्य प्रतिक्रिया करते हैं। फिलहाल राजनीतिक तकाजे को ध्यान में रखते हुए लोग इसे अपने-अपने तरीके से आगे बढ़ा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि भाजपा नेताओं की हिंदुओं के एकजुट होने की अपील कितना असर दिखाएगी, इसको लेकर भी संदेह है क्योंकि अब तक भारतीय समाज ने बार-बार यही दिखाया है कि उनके लिए जातीय पहचान अधिक महत्त्वपूर्ण रही है। लेकिन इसके साथ यह भी सही है कि भाजपा का जमीनी आधार लगातार फैलाव पा रहा है। चूंकि भाजपा का यह विस्तार इसी तरह के मुद्दों से हुआ है, भाजपा एक बार फिर अपना पुराना फॉर्मूला अपनाकर अपना बेस बढ़ाने की कोशिश कर रही है।

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