सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को असम में विदेशी घोषित किए गए लोगों के लिए डिटेंशन सेंटर की दयनीय स्थिति पर सवाल उठाए। शीर्ष अदालत ने कहा कि इसमें पर्याप्त जलापूर्ति, उचित शौचालय और साफ-सफाई का अभाव है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने राज्य के मातिया में डिटेंशन सेंटर में उपलब्ध कराई गई सुविधाओं की स्थिति के बारे में असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से पेश एक रिपोर्ट पर गौर किया। न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, “हमने पाया कि पर्याप्त जल आपूर्ति, साफ सफाई की व्यवस्था और ढंग के शौचालय न होने के कारण सुविधाएं बहुत खराब हैं।”
पीठ ने असम में विदेशी घोषित किए गए लोगों को वापस भेजने और डिटेंशन सेंटर में मुहैया कराई गई सुविधाओं के संबंध में याचिका पर सुनवाई की। इसने कहा कि रिपोर्ट में भोजन और चिकित्सकीय मदद की उपलब्धता के बारे में बात नहीं की गई है। शीर्ष अदालत ने तीन हफ्ते के भीतर उसके सामने एक नई रिपोर्ट पेश करने को कहा। अदालत मामले पर अगली सुनवाई सितंबर में करेगी।
उच्चतम न्यायालय ने 16 मई को मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि केंद्र को मातिया के डिटेंशन सेंटर में घोषित 17 विदेशियों को वापस भेजने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए। न्यायालय ने कहा था कि डिटेंशन सेंटर में दो साल से ज्यादा समय बिता चुके चार लोगों को प्राथमिकता को दी जानी चाहिए।
आज सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की, कृपया असम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा सौंपी गयी रिपोर्ट को देखें। यह खेदजनक स्थिति है। पानी की आपूर्ति नहीं है। उचित शौचालय नहीं हैं। चिकित्सा सुविधाएं नहीं हैं। आप किस तरह की सुविधाओं का प्रबंधन कर रहे हैं?
केंद्र की ओर से पेश वकील ने कहा कि उनके पास शीर्ष अदालत के 16 मई के आदेश के अनुसार निर्वासन के संबंध में निर्देश हैं। पीठ ने केंद्र के वकील से कहा कि वह डिटेंशन सेंटर में प्रदान की गई सुविधाओं के बारे में भी निर्देश हासिल करें।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कहा कि उन्होंने असम में वकीलों से सुना है कि जिन लोगों को वापस भेजे जाने का प्रस्ताव है, उनमें से कुछ के मामले उच्च न्यायालय में लंबित हैं। उन्होंने कहा, उन्हें जांच करनी चाहिए, क्योंकि वे उन लोगों को निर्वासित कर रहे हैं, जिनके मामले कहीं लंबित हैं।
याचिकाकर्ता ने वकील ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया पूरी होने से पहले निर्वासन नहीं होना चाहिए। वकील ने कहा कि उन्हें हमें बताना चाहिए कि क्या यह स्वैच्छिक है, अनैच्छिक है और क्या बांग्लादेश सरकार इससे सहमत है। पीठ ने केंद्र को निर्वासन के मुद्दे पर जवाब दाखिल करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया।