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Friday, October 18, 2024

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गैर-जरूरी याचिकाओं से तंग हुआ सुप्रीम कोर्ट, राज्यों और सार्वजनिक उपक्रमों को लगाई फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह बार-बार चेतावनी के बावजूद कई राज्य सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की तरफ से दायर की गई तुच्छ याचिकाओं से तंग आ चुका है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि राज्य सरकारों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के अधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से मुकदमेबाजी का खर्च नहीं उठाना पड़ता है, अदालत ऐसे तुच्छ मामलों के बोझ तले दब जाती है।

झारखंड सरकार की तरफ से एक सरकारी कर्मचारी के मामले में दायर की गई अपील पर नाराज होने के बाद पीठ ने कहा, हम कई राज्य सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों की तरफ से दायर की गई ऐसी तुच्छ विशेष अनुमति याचिकाओं से तंग आ चुके हैं। पीठ ने कहा, हम पिछले छह महीनों से यही कह रहे हैं। यह काफी है।

इसके साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि चेतावनियों के बावजूद कई राज्य सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों की ओर से पेश हुए वकीलों ने इस तरह की तुच्छ याचिकाएं दायर करने से परहेज करने का कोई इरादा नहीं दिखाया है। पीठ ने अपने आदेश में दर्ज किया, हमें इस मुद्दे के संबंध में राज्य सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों के रवैये में सुधार की कमी दिख रही है। पीठ ने झारखंड सरकार की अपील खारिज कर दी और उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे आदेश की तारीख से चार सप्ताह के भीतर चुकाना होगा। 

पीठ ने कहा, 50,000 रुपये की लागत सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) में जमा की जाएगी, जिसका उपयोग लाइब्रेरी के लिए किया जाएगा और 50,000 रुपये की लागत सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा की जाएगी। इसमें आगे कहा गया है कि राज्य सरकारें और सार्वजनिक उपक्रम इस बात की जांच करने के लिए स्वतंत्र होंगे कि कौन से अधिकारी ऐसी गलत सलाह वाली याचिकाएं दायर करने के लिए जिम्मेदार हैं और वे उनसे लागत वसूलने की मांग भी कर सकते हैं। 

बता दें कि झारखंड सरकार ने राज्य उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे रवींद्र गोप नामक व्यक्ति की सेवाएं बहाल करने का निर्देश दिया गया था। रवींद्र गोप को कथित अनुशासनहीनता, कर्तव्य में लापरवाही और अपने वरिष्ठों के निर्देशों का पालन न करने के लिए विभागीय जांच का सामना करना पड़ा था, जिसके लिए 14 अलग-अलग आरोप तय किए गए थे। उन्हें 2 अगस्त, 2011 के आदेश की तरफ से सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। उच्च न्यायालय रवींद्र गोप की बर्खास्तगी के आदेश से सहमत नहीं था और उसे सेवा में बहाल कर दिया था। इस फैसले से व्यथित होकर राज्य सरकार ने इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

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