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Friday, March 29, 2024

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शीर्ष कोर्ट की रोक NGT के आदेश पर, छह महीने में हटाने का था आदेश BS-4 से नीचे के परिवहन वाहनों को

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें एनजीटी ने अगले छह महीने में बीएस-4 इंजन वाले सभी सार्वजनिक परिवहन वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का आदेश दिया था। एनजीटी के इस आदेश पर पश्चिम बंगाल सरकार ने अपील दायर की थी। मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने मामले में पक्षकारों को नोटिस जारी किया। साथ ही पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दायर अपील पर उनका जवाब मांगा।

एनजीटी ने दिया था आदेश 
गौरतलब है कि एनजीटी ने अपने आदेश में कहा था कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छह महीने में बीएस-IV और उससे कम इंजन वाले सार्वजनिक परिवहन वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जाए। ताकि उसके बाद कोलकाता और हावड़ा सहित राज्य में केवल बीएस-VI वाहन ही चल सकें।

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई एनजीटी के आदेश पर रोक
पीठ ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार के वकील का कहना है कि 24 अक्टूबर, 2018 के आदेश में इस अदालत के निर्देशों के अनुसार, उत्सर्जन मानक भारत स्टेज- IV के अनुरूप कोई मोटर वाहन बेचा या पंजीकृत नहीं किया जाना था। यह 1 अप्रैल, 2020 से देश में प्रभावी हो गया था। इस प्रकार, अनुमति के अनुसार वाहनों के पंजीकरण उस तिथि तक किए गए थे, और इसलिए 15 साल की अवधि को पंजीकरण की तारीख से गिना जाना चाहिए। अगर ये नहीं किया जाएगा को यह 15 साल से कम समय में वाहनों को बेकार बनाने का कारण होगा। पीठ ने आगे कहा कि ऐसे में एनजीटी को नोटिस जारी की जाए साथ ही एनजीटी के निर्देश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी जाती है। 

एनजीटी ने दी थी यह सलाह
गौरतलब है कि मामले में एनजीटी की पूर्वी पीठ ने कहा था कि कोलकाता और हावड़ा में बड़ी संख्या में 15 साल से पुराने निजी और वाणिज्यिक वाहन चल रहे हैं। उन वाहनों के कारण वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। ट्रिब्यूनल ने अपने आदेश में कहा था कि पुराने वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने के साथ ही कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) बसों और इलेक्ट्रिक बसों की शुरुआत की जा सकती है। इसके साथ स्वच्छ और हरित प्रौद्योगिकी के उपयोग की दिशा में कदम बढ़ाया जा सकता है।

बिलकिस बानो की याचिका पर 13 दिसंबर को शीर्ष अदालत में होगी सुनवाई
2002 के गुजरात दंगों की पीड़िता बिलकिस बानो की याचिका पर 13 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। बिलकिस बानो ने इस मामले में राज्य सरकार द्वारा 11 दोषियों की सजा माफ करने को चुनौती दी है। साल 2002 के गोधरा दंगों के दौरान सामूहिक दुष्कर्म और परिवार के सदस्यों की हत्या करने वाले 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देते हुए बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। इसमें 13 मई के आदेश पर दोबारा विचार करने की मांग की गई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गैंगरेप के दोषियों की रिहाई में 1992 में बने नियम लागू होंगे। इसी आधार पर 11 दोषियों की रिहाई हुई थी। 

मिली जानकारी के मुताबिक, न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ द्वारा बानो की याचिका पर विचार करने की संभावना है। बानो ने एक दोषी की याचिका पर शीर्ष अदालत के 13 मई, 2022 के आदेश की समीक्षा के लिए एक अलग अर्जी भी दायर की है।

अमेजन प्राइम वीडियो की इंडिया हेड अपर्णा पुरोहित को मिली अग्रिम जमानत

वेब सीरीज ‘तांडव’ को लेकर दर्ज एफआईआर में अमेजन प्राइम वीडियो की इंडिया हेड अपर्णा पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एम एम सुंदरेश की पीठ ने उनको इस मामले में अग्रिम जमानत दे दी है। मामले की जांच में अपर्णा पुरोहित के सहयोग को देखते हुए अदालत ने उनको अग्रिम जमानत दी है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सिद्धार्थ लूथरा ने अदालत को बताया कि पुरोहित जांच में सहयोग कर रही हैं। शीर्ष अदालत ने इससे पहले 5 मार्च, 2021 को पुरोहित को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया था।
उन पर उत्तर प्रदेश पुलिस कर्मियों, हिंदू देवताओं का अनुचित चित्रण और वेब सीरीज में प्रधान मंत्री की भूमिका निभाने वाले चरित्र के गलत चित्रण का आरोप लगाया गया है।  

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