भारतीय रेलवे यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचाने के साथ खोए और बच्चों को भी उनके माता-पिता से मिलाकर उन्हें भटकने से बचा रहा है। आंकड़ों की मानें तो ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते के तहत मध्य रेलवे ने अप्रैल से अक्तूबर के बीच अब तक 861 ऐसे बच्चों को अपने माता-पिता से मिलवाया है, जो या तो खो गए थे या भागने की फिराक में थे।
रेलवे के इस अभियान से जुड़ी कुछ कहानियां भी सामने आई हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश के खंडवा स्टेशन में निगरानी के दौरान रेलवे सुरक्षा बल के कर्मी ईश्वर चंद जाट और आरके त्रिपाठी को एक अकेला बच्चा बैठा मिला। इस बच्चे के दाएं हाथ में मोबाइल नंबर गुदा हुआ था. इस नंबर पर फोन करने में सामने आया कि वह मानसिक स्वास्थ्य समस्या से गुजर रहा है और बार-बार रास्ता भटक जाता है। बाद में आरपीएफ ने इस बच्चे- सुमित को उसके परिवार से मिलवाया।
सुमित की तरह ही 860 और कहानियां हैं, जिनमें मध्य रेलवे ने नन्हें फरिश्ते अभियान के तहत बच्चों को अभिभावकों के पास पहुंचाया। हालांकि, बच्चों के खोने का कारण हमेशा स्वास्थ्य नहीं होता। कई बार माता-पिता से लड़ाई, पढ़ाई को लेकर डांट या अच्छी जिंदगी की तलाश और मुंबई की ग्लैमर की दुनिया भी बच्चों के घरों से भागने का कारण होता है। रेलवे ने ऐसे बच्चों को भी निगरानी तंत्र के जरिए अपने परिवारों के पास पहुंचाया।
मध्य रेलवे के अधिकारियों के मुताबिक, खोए या भटके बच्चों में 589 लड़के थे। वहीं, इनमें 272 लड़कियां थीं। उन्होंने बताया कि आरपीएफ कर्मी खोए बच्चों को ढूंढने के बाद उन्हें समझाते-बुझाते हैं और फिर उनका सुरक्षित लौटना भी सुनिश्चित करते हैं। आरपीएफ कर्मियों के इस अभियान के लिए माता-पिता भी उनके शुक्रगुजार रहे हैं।