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Friday, April 26, 2024

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शीर्ष कोर्ट में नोटबंदी पर केंद्र का बयान, कहा- बचना चाहिए अदालत को कार्यकारी निर्णय की न्यायिक समीक्षा से

सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी को गलत बताने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को फिर से सुनवाई की गई। इस दौरान 2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के उच्चतम न्यायालय के प्रयास का सरकार ने विरोध किया। केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि अदालत ऐसे मामलों पर सुनवाई या फैसला नहीं दे सकती जिन्हें समय में पीछे जाकर बदलना संभव नहीं हैं। गौरतलब है कि  जस्टिस एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। संवैधानिक पीठ में जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस ए एस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बी वी नागरत्ना भी शामिल हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से किया सवाल
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि की यह टिप्पणी शीर्ष अदालत द्वारा केंद्र सरकार से यह बताने के लिए कहने के बाद आई कि क्या उसने 2016 में 500 रुपये और 1000 रुपये के मूल्यवर्ग के नोटों के विमुद्रीकरण से पहले भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के केंद्रीय बोर्ड से परामर्श किया था।

अदालत ने केंद्र से कहा कि आपने केवल यह बताया है कि इस आर्थिक मुद्दे पर विशेषज्ञों की राय ली गई थी, लेकिन दूसरे पक्ष की याचिका पर आपका क्या विरोध है? आप तर्क दे रहे हैं कि निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त किया गया है। लेकिन, हम चाहते हैं कि आप इस आरोप के बारे में बताएं कि नोटबंदी का फैसला लेते समय निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया गया था या नहीं। दूसरे पक्ष का कहना है कि यह फैसला आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के अनुरूप नहीं है।

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने दिया ये जवाब
इस पर, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि अदालत को कार्यकारी निर्णय की न्यायिक समीक्षा करने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि अगर जांच की प्रासंगिकता गायब हो जाती है, तो अदालत समय में पीछे जाकर ना बदले जा सकने वाले फैसले पर शैक्षणिक मूल्य के सवालों पर राय नहीं देगी।

गौरतलब है कि इससे पहले कल यानी गुरुवार को हुई सुनवाई में वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि केंद्र सरकार अपने आप मुद्रा नोटों से संबंधित कोई भी प्रस्ताव पारित नहीं कर सकती है। यह केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर हो सकता है। ऐसे में इस निर्णय लेने की प्रक्रिया को रद्द कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा था कि बैंक नोटों के मुद्दे को विनियमित करने का अधिकार पूरी तरह से भारतीय रिजर्व बैंक के पास है। केंद्र सरकार अपने आप कानूनी निविदा से संबंधित कोई भी प्रस्ताव शुरू नहीं कर सकती है। आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर ही किया जा सकता है

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