गुजरात सरकार अशांत क्षेत्र अधिनियम के संशोधित प्रावधानों को वापस लेने की योजना बना रही है। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को इस बारे में सूचित किया। बता दें 2019 में संशोधित अधिनियम, अशांत क्षेत्र घोषित क्षेत्रों में जिला कलेक्टर की पूर्व मंजूरी के बिना एक धार्मिक समुदाय के सदस्यों द्वारा दूसरे समुदाय के लोगों को संपत्ति की बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है। राज्य सरकार ने संशोधन के जरिए कुछ कड़े प्रावधान जोड़े थे।
अधिनियम में संशोधनों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर याचिकाओं का जवाब देते हुए, राज्य राजस्व विभाग ने एक हलफनामे के माध्यम से बुधवार को गुजरात उच्च न्यायालय को सूचित किया। प्रतिवादी राज्य एक प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है, विवादित प्रावधानों में संशोधन जो याचिका में चुनौती का विषय है। हलफनामे में कहा गया है, याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई शिकायतें प्रस्तावित संशोधनों के बाद टिक नहीं पाएंगी। राजस्व विभाग के उप सचिव (स्टांप) प्रेरक पटेल द्वारा हस्ताक्षरित हलफनामा सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध माई की खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया। वहीं पीठ ने मामले की अगली सुनवाई पांच दिसंबर को सुनिश्चित की है।
बता दें 2019 में, राज्य भाजपा सरकार ने गुजरात में अचल संपत्ति के हस्तांतरण पर रोक और अशांत क्षेत्रों में परिसर से किरायेदारों की बेदखली से संरक्षण के प्रावधान अधिनियम-1991 में संशोधन किया, जिसे आमतौर पर अशांत क्षेत्र अधिनियम के रूप में जाना जाता है, जो सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील है। 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संशोधित अशांत क्षेत्र अधिनियम को अपनी सहमति दी। संशोधित अधिनियम के तहत, यदि स्थानांतरण होता है तो कलेक्टर यह जांच कर सकता है कि क्या कोई ध्रुवीकरण की संभावना, जनसांख्यिकीय संतुलन में गड़बड़ी या किसी समुदाय के व्यक्तियों के अनुचित समूह की संभावना है। कलेक्टर इन आधारों पर आकलन कर स्थानांतरण के आवेदन को खारिज कर सकते हैं। अधिनियम के अनुसार, पीड़ित व्यक्ति कलेक्टर के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार के पास अपील दायर कर सकता है।