सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने एक विवादित जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी की। अदालत ने पीआईएल को वापस लेने की अनुमति देते हुए कहा, ‘हम राक्षस नहीं हैं।’ याचिकाकर्ता ने इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 22 पर सवाल खड़े किए थे। पिछले साल दायर इस विवादित जनहित याचिका पर अदालत ने याचिकाकर्ता वकील और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AoR) को अदालत में पेश होने का निर्देश दिया था।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में यह विवादित पीआईएल तमिलनाडु में रहने वाले पीके सुब्रमण्यम ने दायर कराई थी। उनके वकील नरेश कुमार ने यह मुकदमा फाइल किया था। इस पर अदालत ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि देश की सबसे बड़ी अदालत के पैनल पर मौजूद वकीलों- एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AoR) का काम बिना सोचे समझे किसी भी याचिका पर साइन करना नहीं है। गुरुवार को याचिकाकर्ता को पीआईएल वापस लेने की अनुमति देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, न्यायाधीश राक्षस नहीं हैं। हम आपको मामला वापस लेने की अनुमति जरूर देंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने PIL दाखिल करने पर वकीलों को जिम्मेदारी का एहसास कराया
सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने रेखांकित किया कि याचिका दाखिल करते समय साइन करने वाले वकीलों (AoR) के कंधों पर बहुत महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। ऐसा नहीं हो सकता कि जो कुछ भी आपके पास आएगा, उसे आप बिना कानूनी और संवैधानिक पहलुओं पर विचार किए दाखिल कर देंगे। इस दो टूक टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अपनी विवादित जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।
सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की भूमिका पर CJI की दो टूक टिप्पणी
दरअसल, दिसंबर, 2022 में इसी मामले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड सिर्फ हस्ताक्षर करने वाला प्राधिकारी नहीं हो सकता। अदालत ने साफ किया कि वकीलों (AoR) को शीर्ष अदालत में जो भी दाखिल किया जाता है उसकी जिम्मेदारी लेनी होगी। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा था, अदालत की प्रमुख चिंता यह है कि एओआर अपने कर्तव्यों का ठीक तरीके से पालन करे। बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 145 के तहत सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाए गए नियमों के अनुसार, केवल एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AoR) के रूप में नामित वकील ही शीर्ष अदालत में किसी पक्ष की पैरवी कर सकते हैं।
विवादित PIL में क्या अपील की गई थी?
बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण से संबंधित है। वहीं, अनुच्छेद 22 कुछ मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत से संरक्षण से जुड़ा है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 20 और 22 को अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) सहित कुछ अन्य अनुच्छेदों का उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल PIL में इन संवैधानिक प्रावधानों को अधिकारातीत (Ultra Vires) घोषित करने की मांग की गई थी।