न्यायाधीशों और लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने से जुड़ी सीआरपीसी की धारा 197 पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को टिप्पणी करते हुए कहा कि यह धारा हर चूक को सुरक्षा कवर नहीं दे सकती है। दो सदस्यीय पीठ ने कहा लोक सेवकों द्वारा कर्तव्यों के निर्वहन में किए जाने वाली चूक तक ही सीमित है।
पीठ ने सीआरपीसी की धारा 197 की उप धारा का जिक्र किया, जिसमें कहा गया है कि जब कोई व्यक्ति जो न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या लोक सेवक है या था, जिसे सरकार द्वारा या उसकी मंजूरी के अलावा अपने कार्यालय से नहीं हटाया जा सकता है, उस पर किसी कथित अपराध का आरोप लगाया जाता है। अपने आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में कार्य करते समय या कार्य करने के इरादे से उसके द्वारा किया गया अपराध, कोई भी अदालत सक्षम प्राधिकारी की पूर्व मंजूरी के बिना ऐसे अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है। जिसने एक सरकारी अधिकारी के खिलाफ दायर एक आपराधिक शिकायत और आरोप पत्र को रद्द कर दिया था। सीआरपीसी की धारा 197 के दायरे, प्रभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने खास ध्यान दिया है। पीठ ने कहा कि ऐसी सभी निर्णयों पर विज्ञापन देना या विस्तार करना आवश्यक नहीं है। यह कहना ही काफी है कि अभियोजन के लिए इस तरह की मंजूरी का उद्देश्य लोक सेवक को आपराधिक कार्यवाही शुरू करके उत्पीड़न से बचाना है।
शिकायतकर्ता ने दिसंबर 2016 में एक प्राथमिकी दर्ज की थी। आरोप लगाया गया था कि लोक सेवक, अन्य लोगों के साथ, उन लोगों के नाम पर संपत्ति दस्तावेज बना रहा था जिनकी मृत्यु हो गई थी। यह जानने के बावजूद कि वे अवैध लाभ के लिए जाली थे। पुलिस ने तीन लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने शिकायत के साथ-साथ आरोप पत्र को पूरी तरह से रद्द करके गलती की है।