प्रवर्तन निदेशालय ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की पूर्व मंत्री ज्योतिप्रिया मलिक के खिलाफ कार्रवाई की है। ईडी ने पीडीएस राशन घोटाले से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में मलिक और उसके दो सहयोगी-बाकिबुर रहमान और टीएमसी नेता शंकर आध्या से जुड़ी 150 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति कुर्क की है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कुर्क संपत्तियों में विभिन्न संस्थाओं की 48 अचल संपत्तियां शामिल हैं, जिनमें साल्ट लेक और बोलपुर स्थित मलिक का घर, कोलकाता-बेंगलुरू में रहमान के दो होटल, बैंक में जमा पैसे सहित कई बेनामी संपत्तियां शामिल हैं। जांच के दौरान सामने आया कि मलिक ने कथित तौर पर करोड़ों रुपये से अधिक की अचल संपत्तियों में से कुछ संपत्तियां अपने परिवार और करीबियों से उपहार के रूप में प्राप्त किया था।
मलिक को केंद्रीय एजेंसी ने 27 अक्तूबर की सुबह कोलकाता के पूर्वी इलाके में साल्ट लेक स्थित उनके आवास से गिरफ्तार किया था। इस दौरान मलिक ने कहा था कि उन्हें बड़ी साजिश का शिकार बनाया गया है। मलिक फिलहाल ममता सरकार में वन मंत्रालय थे। उनके पास 2011 से 2021 तक खाद्य और आपूर्ति विभाग था। ईडी ने दावा किया कि मंत्री के कारोबारी बकीबुर रहमान के साथ संबंध पाए गए हैं। कारोबारी को इस मामले में अक्तूबर की शुरुआत में गिरफ्तार किया गया था। मामले के जांच अधिकारी ने मलिक और रहमान के खिलाफ अदालत में आरोप-पत्र दाखिल किया।
आखिर है क्या राशन घोटाला?
पश्चिम बंगाल में यह घोटाला राशन वितरण में सामने आया था। जांचकर्ताओं और बंगाल भाजपा नेताओं का दावा है कि यह घोटाला एक हजार करोड़ से कम का नहीं है। इनका यह भी दावा है कि यह घोटाला पिछले एक दशक से अधिक समय से चल रहा है और कोविड के वर्षों के दौरान इसमें तेजी आई है। दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा सूचीबद्ध चावल मिलों और आटा मिलों को खरीदे गए गेहूं को पीसने के लिए भेजा जाता है और इसके बाद प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत उचित मूल्य राशन की दुकानों से लाभार्थियों को बांटा जाता है।
सरकारी वितरक मिल मालिकों से गेहूं उठाते हैं और उन्हें राशन की दुकानों में आपूर्ति करते हैं। प्रत्येक वितरक के पास संचालन का एक निश्चित क्षेत्र होता है और वे कितनी दुकानों पर अनाज वितरित कर सकते हैं इसकी संख्या भी पहले से तय होती है। वितरक मिलों से कितनी मात्रा में अनाज खरीद सकते हैं, यह भी निश्चित होता है और उनकी डिलीवरी रसीदों में इसका जिक्र किया जाता है।
यहीं से शुरू होती है कथित भ्रष्टाचार की कड़ी। आरोप है कि वितरकों ने मिल मालिकों के साथ मिलकर राशन की दुकानों में वितरण के लिए मिलों से निर्धारित मात्रा से कम मात्रा में राशन उठाया। जांच एजेंसियों का दावा है कि इससे राशन वितरण प्रणाली में 20-40 फीसदी तक का घाटा हुआ। इसके बाद बचे हुए अनाज को खुले बाजारों में बाजार दरों पर बेच दिया गया और इससे होने वाली आमदनी को सिंडिकेट के सदस्यों के बीच कमीशन के रूप में बांटा गया।