देश-विदेश: कैथोलिक ईसाईयों के धार्मिक नेता पोप फ़्रांसिस ने इराक़ की अपनी यात्रा के दूसरे दिन शिया मुसलमानों के वरिष्ठ धर्मगुरु आयतुल्लाह अली अल-सीस्तानी से मुलाक़ात की है।
शनिवार की सुबह पोप इराक़ के पवित्र शहर नजफ़ पहुंचे और उन्होंने आयतुल्लाह सीस्तानी के निवास पर उनसे मुलाक़ात की। बंद दरवाज़ों के पीछे यह मुलाक़ात क़रीब एक घंटे तक चली।
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ग़ौरतलब है कि इराक़ के किसी भी राजनेता को ईसाईयों के धार्मिक नेता और मुसलमानों के धार्मिक नेता की मुलाक़ात में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई।
आयतुल्लाह सीस्तानी के कार्यालय से जारी किए गए बयान के मुताबिक़, दोनों धार्मिक नेताओं ने आज के दौर में इंसानियत को दरपेश चुनौतियों और इन चुनौतियों का सामना करने के लिए ईश्वर पर ईमान तथा ईश्वरीय दूतों की शिक्षाओं पर अमल जैसे मुद्दों पर विचार विमर्श किया।
इस ऐतिहासिक मुलाक़ात में आयतुल्लाह सीस्तानी ने विभिन्न देशों में लोगों पर जारी अत्याचारों और ग़रीबी व भुखमरी से मुक़ाबले पर ज़ोर दिया और हिंसा, युद्ध व आर्थिक नाकाबंदी को समाप्त किए जाने की मांग की।
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उन्होंने शांतिपूर्ण जीवन के साझा मूल्यों को मज़बूती प्रदान करने और सभी धर्मों के अनुयायियों के बीच आपसी मेल-जोल पर बल दिया।
आयतुल्लाह सीस्तानी का कहना था कि इराक़ के ईसाई नागरिकों को भी दूसरे इराक़ियों की तरह शांतिपूर्ण और ख़ुशहाल जीवन व्यतीत करने का बुनियादी अधिकार हासिल है।
उन्होंने उल्लेख किया कि हालिया कुछ वर्षों के दौरान आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में इराक़ी धर्मगुरुओं ने अहम भूमिका निभाई है और धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने का प्रयास किया है।
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एक अनुमान के मुताबिक़, इराक़ में ईसाई समुदाय की जनसंख्या की 15 लाख से घटकर लगभग 2.5 लाख तक रह गई है।
2003 में इराक़ पर अमरीकी हमले के बाद उत्पन्न हुई अशांति व अस्थिरता से बचने के लिए बड़ी संख्या में ईसाईयों ने देश छोड़ दिया।
2014 में इराक़ में तकफ़ीरी आतंकवादी गुट दाइश के आतंक से भयभीत होकर भी ईसाई देश छोड़कर भागे हैं।