28 C
Mumbai
Thursday, October 16, 2025

आपका भरोसा ही, हमारी विश्वसनीयता !

गुजरात हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: एक भी प्रतिकूल टिप्पणी जज की अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए पर्याप्त

अहमदाबाद। गुजरात हाईकोर्ट ने न्यायपालिका से जुड़ा एक अहम आदेश सुनाया है। अदालत ने कहा है कि किसी भी जज के पूरे सेवा रिकॉर्ड में यदि एक भी प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज हो जाए, या उसकी ईमानदारी पर संदेह हो, तो उसे अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा सकती है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कदम सार्वजनिक हित में उठाया जाता है और इसे सजा नहीं माना जाएगा।


न्यायपालिका की साख पर जोर

मंगलवार को सुनाए गए फैसले में न्यायमूर्ति ए. एस. सुपेहिया और एल. एस. पिरजादा की खंडपीठ ने कहा कि जनता का भरोसा न्यायपालिका पर बना रहे, इसके लिए जजों का चरित्र बिल्कुल साफ-सुथरा होना चाहिए। अदालत ने साफ किया कि यदि किसी जज की ईमानदारी पर संदेह हो जाए, तो उसे आगे सेवा में बनाए रखना उचित नहीं होगा।


मामला क्या था?

यह आदेश उस समय आया जब एड-हॉक सत्र न्यायाधीश जे. के. आचार्य ने अपनी अनिवार्य सेवानिवृत्ति को चुनौती दी।

  • आचार्य को वर्ष 2016 में 17 अन्य जजों के साथ रिटायर किया गया था।
  • उस समय गुजरात हाईकोर्ट ने 50 और 55 वर्ष आयु वाले जजों का मूल्यांकन किया था।
  • जिनका प्रदर्शन संतोषजनक नहीं पाया गया, उन्हें सेवा से हटा दिया गया।

आचार्य ने इस फैसले को राज्य सरकार और राज्यपाल की कार्रवाई के साथ कोर्ट में चुनौती दी थी। हालांकि, हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी।


नोटिस की जरूरत नहीं

खंडपीठ ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि

  • किसी जज को अनिवार्य सेवानिवृत्त करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी करना आवश्यक नहीं है।
  • यह प्रक्रिया प्रशासनिक निर्णय है, न कि अनुशासनात्मक सजा।
  • किसी जज को पदोन्नति या उच्च वेतनमान मिल जाना, अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को प्रभावित नहीं करता।

महत्व क्यों है यह फैसला?

इस आदेश ने यह संदेश दिया है कि न्यायपालिका की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर कोई समझौता नहीं होगा। यदि जज की ईमानदारी पर संदेह भी हो, तो उसे पद पर बने रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती।

ताजा खबर - (Latest News)

Related news

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here