नई दिल्ली – चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट की सलाह, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट की निर्वाचन आयोग पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मौखिक टिप्पणी के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्वाचन आयोग से कहा है कि इसे सही परिप्रेक्ष्य में लीजिए। जस्टिस एमआर शाह ने निर्वाचन आयोग से कहा कि आप हाईकोर्ट की टिप्पणी को उसी तरह लीजिए जैसे डॉक्टर की कड़वी दवाई को लिया जाता है।
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चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट की सलाह
सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि हमें सुने बिना, यह जाने बिना कि आपदा प्रबंधन किसका काम है, मद्रास हाईकोर्ट ने आयोग के खिलाफ टिप्पणी कर दी। तब जस्टिस शाह ने पूछा कि आयोग का क्या काम है। तब द्विवेदी ने कहा हमारे पास इतना फोर्स नहीं होता कि हर कार्यक्रम पर अंकुश लगाएं। इसपर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जज को सवाल करते समय सावधान रहना चाहिए। लेकिन यह नहीं कह सकते कि मीडिया जज की टिप्पणी को रिपोर्ट न करे। अक्सर सिर्फ लिखित आदेश नहीं जज की टिप्पणी भी लोगों के मन में भरोसा जगाती हैं। तब द्विवेदी ने कहा कि हम सिर्फ इस टिप्पणी की बात कर रहे हैं। इसका केस से कोई संबंध नहीं था।
जस्टिस शाह ने कहा कि हर जज का अलग स्वभाव होता है। कई बार टिप्पणी भी सार्वजनिक हित में की जाती है। इसे सही सन्दर्भ में लेना चाहिए। लेकिन चुनाव आयोग पर लोगों की हत्या का आरोप लगाना अनुचित है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा हम आपकी बात समझते हैं। पर हम हमारे हाईकोर्ट को हतोत्साहित भी नहीं करना चाहते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा नहीं कि जज सोचकर आते हैं कि यह बोलना है। बात के क्रम में कई बात कही जाती है। हम एक संवैधानिक संस्था के रूप में चुनाव आयोग का सम्मान करते हैं। द्विवेदी ने कहा कि जो टिप्पणी हुई उसका केस से संबंध नहीं था। यह टिप्पणी भी नहीं थी, एक तरह से हमारे खिलाफ फैसला था।
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द्विवेदी ने कहा कि जज अपने आदेश में यह भी लिखें कि टिप्पणी का अर्थ क्या था। जस्टिस शाह ने कहा कि ऐसी मांग सही नहीं। जजों के बातचीत के क्रम में कुछ कहना एक मानवीय प्रक्रिया है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम हाईकोर्ट का सम्मान बनाए रखना चाहते हैं। मीडिया पर रोक भी नहीं होनी चाहिए। मीडिया कोर्ट की हर बात रिपोर्ट करे, इससे जवाबदेही बढ़ती है। यह कोशिश होनी चाहिए कि कोर्ट का सवाल और टिप्पणी केस से जुड़ा हो। पर कभी बात उससे परे चली जाती है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम समझते हैं कि हत्या का आरोप लगाने से आप परेशान हैं। मैं अपनी बात करूं तो मैं ऐसी टिप्पणी नहीं करता। लेकिन हाईकोर्ट की लोगों के अधिकार सुरक्षित रखने में एक बड़ी भूमिका है। जस्टिस शाह ने कहा कि आप हाईकोर्ट की टिप्पणी को उसी तरह लीजिए जैसे डॉक्टर की कड़वी दवा को लिया जाता है। तब द्विवेदी ने कहा कि हम चुनाव करवाते हैं। सरकार अपने हाथ में नहीं ले लेते। अगर किसी दूर इलाके में मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री दो लाख लोगों की रैली कर रहे हों तो आयोग भीड़ पर गोली नहीं चलवा सकता, लाठी नहीं चलवा सकता। इसे देखना आपदा प्रबंधन कमिटी का काम होता है। तब जस्टिस शाह ने कहा कि आप बाद में एक सर्कुलर लाए कि 500 से अधिक लोग रैली में नहीं होंगे। पहले ऐसा क्यों नहीं किया। तब द्विवेदी ने कहा कि यह बंगाल में स्थिति को देखते हुए बाद में किया गया। तमिलनाडु में ऐसी स्थिति नहीं थी। वहां 4 अप्रैल को चुनाव पूरा भी हो चुका था।
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जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा हमने आपकी बातों को नोट कर लिया है। हम हाईकोर्ट का सम्मान बनाए रखते हुए एक संतुलित आदेश देंगे। द्विवेदी ने कहा कि हमें भी सुप्रीम कोर्ट के संरक्षण की ज़रूरत है। तब जस्टिस शाह ने कहा कि हम समझते हैं कि आपने अपना काम पूरी क्षमता से किया। हम कई बार कठोर टिप्पणी करते हैं ताकि लोगों के हित में काम हो सके। सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रदीप यादव ने मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी का समर्थन किया। तब वकील अमित शर्मा ने उन्हें टोकते हुए कहा कि हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद कुछ लोगों ने एफआईआर दर्ज करवाना शुरू कर दिया है। इस अजीब स्थिति को भी समझा जाना चाहिए। तब कोर्ट ने कहा कि हमने सभी वकीलों को सुना, आदेश जारी करेंगे।