सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए दिए गए ’मौखिक शपथ’ को वापस लेने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी है। अब इस याचिका पर 26 सितंबर को सुनवाई होगी। इस दौरान शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इससे पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने यह टिप्पणी केंद्र की उस याचिका पर की, जिसमें कहा गया था कि या तो इसे नवंबर 2022 के मौखिक उपक्रम से मुक्त कर दिया जाए या वैकल्पिक रूप से सरकार को इस सीजन में कुछ साइटों पर जीएम बीज बोने की अनुमति दी जाए।
दरअसल केंद्र ने जीएम सरसों की व्यावसायिक खेती पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए नवंबर 2022 में दिए गए ’मौखिक शपथ’ को वापस लेने के लिए एक आवेदन दायर किया है। मौखिक शपथ जस्टिस दिनेश माहेश्वरी (अब सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दिया गया था।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल(एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने मंगलवार को जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ के समक्ष दलील दी कि वह शपथ एक अलग संदर्भ में किया गया था और यह एक पर्यावरणीय रिलीज है जहां 12 वर्षों तक शोध चला है। उन्होंने आगामी बुआई सीजन और खाद्य तेल की बढ़ती मांग पर प्रकाश डाला। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि अगर अदालत हमें हमारे उपक्रम से मुक्त कर देती है, तो हम शुरू में प्रस्तावित दस स्थलों पर सरसों के बीज बोने और अनुसंधान करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं। इस मामले का फैसला करते समय इस अदालत को हमारी रिपोर्टों का भी लाभ मिलेगा।
इस पर पीठ ने उनसे पूछा, ‘अगर हम आपको डिस्चार्ज कर दें तो इस मामले में क्या बचता है।’ पीठ ने यह भी कहा कि बुआई के मौसम में एक साल की देरी से कोई फर्क नहीं पड़ता। पीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती और अगले साल एक और सीजन होगा।
भाटी ने कहा कि अगला बुआई सीजन अगले साल होगा और हम अनुसंधान के अंतिम चरण में हैं। यह कोई व्यावसायिक रिलीज नहीं है बल्कि एक पर्यावरणीय रिलीज़ है।’ भाटी ने कहा कि पिछला आश्वासन तब दिया गया था, जब मामले को अंतिम सुनवाई के लिए अगले सप्ताह सूचीबद्ध किया जाना था। उन्होंने कहा, अगर पीठ केंद्र को मौखिक शपथ से मुक्त कर देगी तो वे शुरू में प्रस्तावित दस स्थलों पर सरसों के बीज बोने और अनुसंधान करने के लिए आगे बढ़ सकते हैं। भाटी ने यह भी कहा कि इसे व्यावसायिक रूप से जारी नहीं किया जाएगा।
एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि पर्यावरणीय रिलीज का मतलब पर्यावरण में रिलीज करना है और यदि वे कोई परीक्षण करना चाहते हैं तो वे इसे ग्रीनहाउस स्थितियों में कर सकते हैं अन्यथा इससे प्रदूषण हो जाएगा। भूषण ने तर्क दिया कि तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने कहा था कि जब तक नियामक तंत्र, जो कि जर्जर स्थिति में है, में सुधार नहीं हो जाता तब तक कोई खुला परीक्षण नहीं किया जाएगा।
जस्टिस नागरत्ना ने भाटी से कहा कि पीठ एक नए संयोजन में है क्योंकि जस्टिस दिनेश माहेश्वरी सेवानिवृत्त हो गए हैं। इससे पहले जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस नागरत्ना की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की थी। पीठ ने भाटी से कहा कि पूरे मामले पर नये सिरे से बहस करनी होगी। मौखिक बयान से मुक्ति की मांग करने वाले आवेदन का जिक्र करते हुए पीठ ने भाटी से पूछा, ’हमें इस तरह का काम टुकड़ों में क्यों करना चाहिए?’ पीठ ने यह भी कहा कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी को भी बनाए रखा जाना चाहिए और अदालत को पूरी समस्या को समझने की जरूरत है। दलीलें सुनने के बाद अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 26 सितंबर को तय कर दी।