केंद्र सरकार ने नियामक और जांच एजेंसियों को निर्देश दिया है कि वह बिना देरी के चौबीस घंटों के भीतर उन संस्थाओं के खिलाफ कार्रवाई करें, जिनको संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के द्वारा आतंकवाद और आतंवकवाद के वित्तपोषण के लिए नामित किया गया है।
सरकार ने कहा है कि उनके खिलाफ ‘गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए)’ और ‘सामूहिक विनाश के हथियार और उनकी आपूर्ति प्रणाली अधिनियम, 2015’ की धारा 12ए के तहत कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। इसे ‘डब्ल्यूएमडी अधिनियम’ के नाम से भी जाना जाता है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र (सुरक्षा परिषद) अधिनियम, 1947 की धारा 2 के तहत अनिवार्य यूएनएससी प्रस्ताव 1718 (2006) और 2231 (2015) और उनके उत्तराधिकारी प्रस्तावों के तहत अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए कानून बनाया है।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय के तहत राजस्व विभाग (डीओआर) ने पिछले महीने देश के नियामक, जांच, खुफिया और राज्य पुलिस एजेंसियों को खुफिया जानकारी एकत्र करने का एक निर्देश जारी किया था। इस निर्देश में 2005 के कानून के क्रियान्वयन की प्रक्रिया के बारे में बताया गया था, जिसका मकसद सामूहिक विनाश के किसी भी प्रकार के जैविक, रासायनिक या परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना है।
यह कानून एक आतंकवादी को सामूहिक विनाश के हथियार और उनकी आपूर्ति प्रणाली हासिल करने से रोकने के लिए भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करने का एक उपकरण है।
डीओआर के संचार में कहा गया है कि सरकार ने उन व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ 1967 के ‘गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए)’ की धारा 51ए और ‘सामूहिक विनाश के हथियार और उनकी आपूर्ति प्रणाली (गैरकानूनी गतिविधियों का निषेध) अधिनियम, 2005’ की धारा 12ए के तहत कार्रवाई करने के आदेश जारी किए हैं, जिन्हें सरकार के साथ-साथ यूएनएससी के प्रस्तावों में आतंकवाद और आंतक के लिए वित्त पोषण के लिए नामित किया गया है। इसने कहा कि विदेश मंत्रालय और यूएनएससी के द्वारा समय-समय पर ऐसे व्यक्तियों और संस्थाओं की सूची जारी की जाती है।
विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संधियों के मुताबिक यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रतिबंध प्रभावी हैं और नामित व्यक्ति या संस्थाएं लक्षित धन और संपत्तियों को डायवर्ट या इस्तेमाल करने में सक्षम नहीं हैं, यह जरूरी है कि प्रतिबंध बिना किसी देरी के लगाए जाएं।