म्यांमार से घुसपैठ को रोकने के लिए केंद्र ने भारत और म्यांमार सीमा पर बाड़ेबंदी और पड़ोसी देश म्यांमार से मुक्त आवाजाही व्यवस्था (एफएमआर) को खत्म करने का फैसला किया था। केंद्र के निर्णय के खिलाफ मिजोरम विधानसभा में बुधवार को एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें केंद्र से फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया है। गौरतलब है कि मिजोरम के गृह मंत्री सपडांगा ने इस सदन में पेश किया था।
मिजोरम विधानसभा में प्रस्ताव पेश करते हुए राज्य के गृह मंत्री सपडांगा ने कहा कि अंग्रेजों ने भारत-म्यांमार सीमा का सीमांकन किया और जातीय लोगों की भूमि को दो देशों में विभाजित कर दिया। ‘जो जातीय’ लोग, सदियों से मिजोरम और म्यांमार की चिन पहाड़ियों में बसे हुए हैं और जो कभी अपने प्रशासन के तहत एक साथ रहते थे। अंग्रेजों के भारत में कब्जा करने के बाद उन्होंने लोगों को दो देशों में बांट दिया।
‘जो जातीय’ लोग विभाजन स्वीकार नहीं करते- सपडांगा
गृह मंत्री सपडांगा ने कहा कि ‘जो जातीय’ लोग भारत-म्यांमार सीमा को स्वीकार नहीं कर सकते, जिसे अंग्रेजों ने थोपा था। वे एक ही प्रशासनिक इकाई के तहत पुनर्मिलन का सपना देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाना या एफएमआर को खत्म करना इनके हित में नहीं है। ‘जो जातीय’ के लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
भारत-म्यामांर सीमा पर बाड़ेबदी के खिलाफ प्रस्ताव
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छह फरवरी को घोषणा की थी कि पूरी भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ेबंदी की जाएगी। दो दिन बाद आठ फरवरी को अमित शाह ने कहा कि केंद्र ने देश की आंतरिक सुरक्षा और पूर्वोत्तर राज्यों की जनसांख्यिकीय संरचना को बनाए रखने के लिए भारत-म्यांमार एफएमआर को खत्म करने का फैसला किया है। इसके खिलाफ मिजोरम विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया गया। गृह मंत्री सपडांगा ने आरोप लगाया कि हालिया फैसला मणिपुर सरकार की मांगों से प्रेरित दिखाई देता है।