ओडिशा उच्च न्यायालय ने पुलिस के योग्य ग्रेजुएट कांस्टेबल और आपराधिक खुफिया (सीआई) हवलदारों द्वारा कुछ मामलों की जांच की अनुमति देने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को रद्द कर दिया है।
न्यायमूर्ति आदित्य कुमार महापात्र की पीठ ने शुक्रवार को एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए ओडिशा सरकार के प्रस्ताव को रद्द कर दिया। पीठ ने कहा, ”इस अदालत को इस निष्कर्ष पर पहुंचने में कोई हिचक नहीं है कि कांस्टेबलों और सीआई हवलदारों को जांच की शक्ति प्रदान करने वाला पुलिस परिपत्र आदेश संख्या 393, दिनांक-21 मई 2022 कानूनन टिकने योग्य नहीं है। इसलिए, इसे रद्द किया जाता है।
ओडिशा सरकार ने इससे पहले स्नातक कांस्टेबलों और सीआई हवलदारों को कुछ छोटे अपराधों की जांच करने की अनुमति देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसमें तीन साल तक की सजा का प्रावधान है। इनमें ओडिशा जुआ रोकथाम अधिनियम 1955, ओडिशा फायर वर्क्स एंड लाउड-स्पीकर (विनियमन) अधिनियम 1958, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015, मोटरसाइकिल चोरी, आबकारी अधिनियम और अन्य स्थानीय अधिनियमों के तहत आने वाले अपराध शामिल थे।
बता दें कि 27 जनवरी 2018 को तत्कालीन डीजीपी आरपी शर्मा की ओर से एक प्रस्ताव दिए जाने के बाद इस मामले में निर्णय लिया गया था। जिसे ओडिशा सरकार की ओर से अनुमोदित किया गया था। सूत्रों के अनुसार कांस्टेबलों और आपराधिक खुफिया विभाग के हवलदारों को अपराध स्थलों का दौरा करने, मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की जांच करने और अपराधियों की बरामदगी और गिरफ्तारी के लिए उपाय करने का प्रभार दिया गया था।
इसके लिए उन्हें किसी भी मान्यता प्राप्त पुलिस प्रशिक्षण संस्थान में चार से पांच सप्ताह के संस्थागत प्रशिक्षण के बाद कम से कम 45 दिनों की अवधि के लिए पुलिस स्टेशन में फील्ड प्रशिक्षण दिया जाना था। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्हें जांच की शक्ति प्राप्त करने के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए एक परीक्षा देनी थी।
इसके विरोध में मिनाकेतन नायक और अन्य ने उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की थी। याचिका में पुलिस के योग्य ग्रेजुएट कांस्टेबल और आपराधिक खुफिया (सीआई) हवलदारों को कुछ मामलों की जांच की अनुमति देने के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने इसी रिट याचिका की सुनवाई करते हुए सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।