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Friday, May 3, 2024

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‘अब खुशहाल व शादीशुदा, मुकदमा बंद हो’, पीड़िता 27 साल पुराने दुष्कर्म केस में, घटी दोषी की सजा

उच्चतम न्यायालय ने दुष्कर्म के एक मामले में दोषी की सजा कम कर दी है। अपराध के समय पीड़िता की आयु महज 11 साल थी। बलात्कार के इस मामले में पीड़िता ने अदालत से कहा कि वह खुशहाल और शादीशुदा है। पीड़िता ने कहा कि उसे इस मामले को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। गवाही के मद्देनजर दोषी की सजा कम करने का फैसला जस्टिस बीआर गवई, पीएस नरसिम्हा और अरविंद कुमार की पीठ ने सुनाया। बता दें कि आरोपी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत अदालत ने नाबालिग से दुष्कर्म का दोषी पाया था।

गौरतलब है कि इस मामले में मध्य प्रदेश के खंडवा की ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था। फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में एक अपील दायर की। हाईकोर्ट ने आरोपी को बरी करने के फैसले को पलट दिया और शख्स को दुष्कर्म का दोषी ठहराया। उच्च न्यायालय ने आरोपी को कठोर आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

कारावास की अवधि पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
दोषी करार दिए जाने के बाद मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ शख्स ने शीर्ष अदालत का रुख किया। इस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यूनतम सजा सात साल कारावास है, लेकिन विवेकाधिकार अदालत के पास है। अदालत इस मामले में सात वर्ष से कम अवधि के कारावास की भी सजी दे सकती है।

दोषसिद्धि बरकरार रहेगी, लेकिन कारावास पूरा हुआ
पीठ ने कहा, “अभियोजन पक्ष भी वकील के माध्यम से इस मामले में पेश हुआ है।” पीड़िता ने कहा है कि वह खुशहाल और शादीशुदा है। उसे इस मामले को आगे बढ़ाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। अपीलकर्ता पहले ही पांच साल से अधिक की सजा काट चुका है।” मुकदमे के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत दोषसिद्धि बरकरार रहेगी, लेकिन अदालत मानती है कि पहले काटी जा चुकी कारावास की सजा न्याय के उद्देश्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगी।”

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा दोषी
बता दें कि दोषी ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि उस व्यक्ति ने पीड़िता की गरीबी का फायदा उठाकर उसका शोषण किया था।

हाईकोर्ट ने कहा, गरीबी का फायदा उठाकर शोषण किया
उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार, प्रतिवादी पीड़िता का संरक्षक था; उसकी पत्नी ने उसे शिक्षित करने और उसका पालन-पोषण करने का बीड़ा भी उठाया है। प्रतिवादी-अभियुक्त ने पीड़िता की गरीबी का फायदा उठाकर उसका शोषण किया। जब वह 11वीं कक्षा की छात्रा थी तब शिक्षा के कारण उसकी पत्नी ने पीड़िता को शरण दी। प्रतिवादी ने इस तथ्य का फायदा उठाकर भरोसे को तोड़ा।

27 साल पुराना है मामला
बता दें कि इस मामले की एफआईआर, 27 साल पहले दर्ज कराई गई थी। 22 अक्टूबर, 1996 को नाबालिग रही पीड़िता के माता-पिता ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी। पीड़िता के गर्भवती होने पर अपराध को छिपाने के लिए आरोपी और उसकी पत्नी ने गर्भपात कराने के लिए 10,000 रुपये की पेशकश भी की।

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