बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता को सुप्रीम कोर्ट का जज बना दिया गया है। जस्टिस दत्ता को रविवार को पदोन्नत कर उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाया गया। उनके शपथ लेने के बाद शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की संख्या 28 हो जाएगी। भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित सर्वोच्च न्यायालय में कुल 34 जज हो सकते हैं।
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने ट्विटर पर न्यायमूर्ति दत्ता को शीर्ष कोर्ट में पदोन्नत करने की घोषणा की। जस्टिस दत्ता का जन्म 9 फरवरी 1965 को हुआ था। जस्टिस दत्ता इस साल 57 साल के हो गए। उनका कार्यकाल 8 फरवरी 2030 तक होगा। सुप्रीम कोर्ट में सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है। उनके नाम की सिफारिश पिछले साल सितंबर में तत्कालीन न्यायमूर्ति यूयू ललित (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने की थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ सोमवार को न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता को पद की शपथ दिलाएंगे। कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश स्वर्गीय सलिल कुमार दत्ता के पुत्र और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति अमिताव रॉय के बहनोई न्यायमूर्ति दत्ता सुबह 10.30 बजे सर्वोच्च न्यायालय के कोर्ट रूम 1 में शपथ लेंगे।
महिलाएं-बच्चे धर्मांतरण के मुख्य टारगेट: याचिकाकर्ता
इस बीच सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि महिलाएं और बच्चे देश में विदेशी वित्तपोषित धर्मांतरण के मुख्य टारगेट हैं। केंद्र और राज्य सरकारें इसे रोकने के लिए उचित कदम उठाने में विफल रही हैं। जस्टिस एमआर शाह और सीटी रविकुमार की पीठ के समक्ष दायर एक लिखित सबमिशन में जनहित याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने इस मुद्दे पर कानूनी शून्यता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े नागरिकों के धर्मांतरण की साजिश रची जा रही है। इससे पहले जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पांच दिसंबर को कहा था कि परमार्थ कार्य का मकसद धर्मांतरण नहीं होना चाहिए। जबरन धर्म परिवर्तन एक गंभीर मुद्दा है, जो संविधान की भावना के खिलाफ है। उपाध्याय ने लिखित सबमिशन में धार्मिक रूपांतरण से संबंधित कथित गतिविधियों को रोकने के लिए विदेशी वित्त पोषित एनजीओ और व्यक्तियों के लिए एफसीआरए (विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम) के तहत बनाए गए नियमों की समीक्षा सहित विभिन्न राहत मांगी है।